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१६२. मिश्रित स्कूल और नैतिकता

मिश्रित स्कूलोंके प्रश्नपर 'वर्कर'में श्रीमती वाइबर्गने जो जोरदार लेख[१] लिखा है, उसे हम बड़ी खुशीके साथ प्रकाशित कर रहे हैं। इस मामलेको 'ट्रान्सवाल लीडर' ने उठाया था; और शिक्षा-बोर्डने श्रीमती वाइबर्गको अपने आरोप प्रमाणित करनेको कहा है। श्रीमती वाइबर्गने ऐसा करना स्वीकार कर लिया है, बशर्ते कि उन्हें, उन तक तथ्य और जानकारी लानेवालोंको--- जो कि शिक्षक है--किसी भी प्रकारकी हानि न होने देनेका आश्वासन दिया जाये। उन शिक्षकोंकी पूरी-पूरी रक्षाका जो आश्वासन श्रीमती वाइबर्ग कुदरतन माँग रही है उसे देनमें बोर्ड कुछ झिझक रहा है। फिलहाल हमें इससे कोई सरोकार नहीं है कि श्रीमती वाइबर्गके पास जो प्रमाण हैं उन्हें वे बोर्डके सामने प्रस्तुत करती है अथवा नहीं। जिस तथ्यको हम सबके सामने रखना चाहते हैं वह यह है कि 'ट्रान्सवाल लीडर' ही नहीं, जोहानिसबर्गके लगभग सभी समाचारपत्र यह कह रहे हैं कि मिश्रित स्कूलोंकी, खासकर सयाने बालक-बालिकाओंके लिए मिश्रित स्कूलोंकी, प्रणाली समाप्त होनी चाहिए। लगता है कि वे यह मानकर चल रहे हैं कि सार रूपमें श्रीमती वाइबर्गका अभियोग सच है।

"चैनसे बैठो, और आभार मानो", यह लॉर्ड जॉन रसेलका नीतिवाक्य था। नेटालका शिक्षा विभाग हमारे मध्य लड़के और लड़कियोंकी सहशिक्षाका जो मूर्खतापूर्ण प्रयोग करना चाहता था उसके प्रति, सहज प्ररणावश, अरुचि प्रकट करनेवाले भारतीय माता-पिताओंकी बद्धिमत्ताकी हम प्रशंसा करते हैं। यह यग मलतः नई-नई बातें चलाने और अंधाधुंध प्रयोग करते जानेका युग है। गतिशीलताको प्रगति समझा जाता है। आपको बस चलते रहना है- इसकी परवाह नहीं कि आप आगेकी ओर बढ़ रहे हैं या पीछे जा रहे हैं। उत्साही सुधारकका कहना है कि वर्तमान व्यवस्थामें अवश्य खराबी होगी, और इसीलिए उसमें सुधारोंका होना जरूरी है। सच्चे सुधारकका नीतिवाक्य' होना चाहिए "जल्दी करो सही लेकिन धीरजसे"। श्रीमती वाइबर्ग जिन बातोंको प्रकाशमें लाई हैं, उनसे साफ देखा जा सकता है कि पीढ़ियोंसे चली

 
  1. श्रीमती वाइबर्गने अपने लेखमें कहा था कि लन्दनमें लड़के और लड़कियोंके बीच परस्पर समानता स्थापित करनेके आदर्शको लेकर सह-शिक्षाका जो प्रयोग चालू किया था, वह बन्दकर दिया गया, क्योंकि भ्रामक आदर्शक कारण समानता न आ सकी-उलटे अन्तर बढ़ गया। किन्तु जोहानिसबर्गमें सह-शिक्षाके पीछे ऐसी कोई भावना नहीं है; वहाँ इस पद्धतिको अपनानेका एकमात्र ख्याल यह है कि दोनोंके लिए, अलग स्कूल खोलनेके निमित्त अधिक इमारतें बनवानेका खर्च न करना पड़े। उन्होंने शिकायतके तौरपर कहा कि सह-शिक्षासे पैदा होनेवाले स्पष्ट और गम्भीर नतीजोंके खिलाफ कोई सावधानी "नहीं बरती गई है" और परिणामतः ऐसी कई घटनाएँ हुई हैं जिनका जिक्र करनेके फलस्वरूप जिक्र करनेवालेपर मुकदमा चल सकता है। बच्चों के माता-पिता, प्रतीत होता है, उनसे अवगत नहीं हैं, लेकिन स्कूलके ईमानदार अध्यापक-गण इसके कारण बड़ी उलझनमें पड़ गये हैं। इंडियन ओपिनियन, ९-१२-१९११॥