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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमान्य कर देनेके लिए यही बात पर्याप्त है कि [ऐसी ही] कोई चीज पहले हो चुकी है -- इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं कि जो-कुछ किया गया वह उचित है या अनुचित । हमसे यह कहनेकी क्या जरूरत थी कि नगरपालिकाका मताधिकार तो पहलेके एक अध्यादेश द्वारा हमसे छीना जा चुका है, और प्रस्तावित अध्यादेशके मसविदेकी अधिकांश धाराएँ करीब-करीब पुरानी धाराओंके समान ही हैं ? श्री हरकोर्टको यह क्यों नहीं सूझा कि ब्रिटिश भारतीय संघके लिए यही उचित था कि वह उनका ध्यान --विशेष रूपसे उस समय जब कानून दक्षिण आफ्रिका संघकी स्थापनाके परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाली नई परिस्थितियोंमें बनाया जा रहा है इस बातकी ओर खींचे कि नये कानूनमें वही पुरानी धाराएं शामिल की जा रही हैं। श्री हरकोर्ट ऐसे उपयुक्त अवसरपर, जबकि अध्यादेशका यह मसविदा पास किया जानेवाला है, उस अन्यायपूर्ण नीतिमें परिवर्तन करानेका आग्रह क्यों नहीं कर सकते, यह समझमें नहीं आता।

हमें यह देखकर दुःख होता है कि श्री हरकोर्ट साम्राज्य-सरकारको कुछ इस रूप में पेश करते हैं, मानो वह भी [दक्षिण आफ्रिका]संघके मन्त्रियोंकी छलपूर्ण नीतिसे सहमत हो। श्री हरकोर्ट और संघके मन्त्री यह कहकर हमारी बुद्धिका अपमान करते है कि चूंकि परवाने दिये जानेसे सम्बन्धित धाराएँ सबके लिए समान रूपसे लागू होती हैं, अतः हमारे पास शिकायत करनेका कोई आधार नहीं है। उन्हें भी हमारी तरह भली-भाँति मालूम है कि अधिकांश मामलोंमें इस प्रकारकी सर्वसामान्य धाराएँ अमलके वक्त केवल एशियाइयोंपर ही लागू की गई हैं। श्री हरकोर्ट के तद्विषयक पत्रके एक अंशमें अदालतमें अपील करनेके अधिकारसे वंचित किये जानेको कष्टप्रद कहा गया है, इससे हमें यह आशा ज़रूर बंधती है कि इस दिशामें कुछ किया जायेगा।

यह आश्चर्यकी बात है कि वजनी मसलोंकी चर्चा करनेवाले एक महत्वपूर्ण पत्रमें हमारी शिकायतोंके जवाबमें एकदम तुच्छ और नगण्य दलीलोंका प्रयोग इतनी दृढ़तासे किया गया है। उदाहरणार्थ, स्वच्छताकी दलील गलत सिद्ध हो चुकी है, लेकिन उसी आधारपर भारतीयों, अन्य एशियाइयों, यहाँतक कि अन्य रंगदार लोगोंको भठियारखानों (बेकरियों) आदिमें नौकरीके अधिकारसे वंचित करनेको श्री हरकोर्ट उचित ठहराते हैं। उन्हें इस समय तक यह जान जाना चाहिए कि उक्त धारा और कुछ नहीं, ईमानदार लोगोंके जीवन-यापनके साधन और नौकरीका एक रास्ता बन्द करने का प्रयास-मात्र है। निश्चय ही यह देखनेका काम स्वास्थ्य और सफाई अधिकारियोंपर छोड़ा जा सकता है कि भठियारखानेवाले और उनके कर्मचारी सफाईके नियमोंका पालन करते हैं या नहीं। हमें यह भी बिलकुल पक्के तौरपर बताया गया है कि एक बिलकुल ही दूसरे मामलेमें महिला श्रमिकोंके विरुद्ध भी ऐसी ही पाबन्दी लगाई गई है। ट्रामगाड़ियों-विषयक हमारी बहुत बड़ी शिकायतको भी इसी प्रकार यह कहकर अस्वीकृत कर दिया गया है कि यह चीज बहुत लम्बे अर्सेसे चली आ रही है।" गोया, कोई अपराध बार-बार दोहराये जानेपर सचमुच गुण बन जाता हो। हमें दुःख है कि साम्राज्य-सरकार, श्री हरकोर्ट के पत्र में व्यक्त दलीलको अपनाकर, साम्राज्यके विभिन्न भागोंमें परस्पर-विरोधी स्थानीय हितोंके बीच सन्तुलन