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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/२९५

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जोहानिसबर्गका स्कूल २५९ तो यह है कि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयको भी अन्तिम नहीं माना जा सकता। यदि उस महान् संस्थाका निर्णय हमारे विपरीत बैठे तो समाजको साम्राज्य- सरकारसे उसके रुख के बारेमें कोई स्पष्ट घोषणा करवानी पड़ेगी । यह प्रश्न प्रतिष्ठाका है और आगे-पीछे इसका निबटारा करवाना ही पड़ेगा। श्री जॉर्डनका निर्णय हमें ललकार रहा है कि हम इसका निबटारा शीघ्र करवायें । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९१२ २१९. जोहानिसबर्गका स्कूल आखिर प्रान्तीय परिषदको कार्यकारिणीने यही निर्णय किया कि भारतीय बालकोंके शिक्षण के लिए भारतीयोंको पृथक् स्कूल न खोलने दिया जाये | पृथक् स्कूल खोलनेकी अनुमति न देनेका कोई उचित कारण नहीं था, इसलिए हमें विवश होकर यह मानना पड़ता है कि कार्यकारिणीने भारतीयोंकी प्रार्थनाको अपनी एशियाई -विरोधी भावनाके सबबसे ही अस्वीकृत किया है। स्कूल निकायने स्कूल खोले जानेकी सिफारिश कर दी थी। भारतीयोंकी प्रार्थना स्वीकार कर लेने के पक्ष में बहुतेरे पूर्व-दृष्टान्त भी विद्यमान थे । स्कूलके संस्थापकों (प्रोमोटर्स) ने गारंटी दे दी थी कि वे स्कूलका किराया देते रहेंगे और उसमें विद्यार्थी भी बड़ी संख्या में आ जायेंगे। हमारी सम्मतिमें तो भारतीयों की माँग पूरी कर देनेके लिए इतना ही पर्याप्त था कि जोहानिसबर्गके रंगदार लोगोंके स्कूल बालकोंको अपनी भाषा पढ़ने की कोई सुविधा नहीं देते। सरकार भी उन भारतीय युवकों का कुछ उपयोग नहीं कर सकती जो अपनी भाषा न जानते हों । परन्तु हम जानते हैं कि यहाँकी अपने मुँह मियाँ मिट्ठूकी कहावत चरितार्थ करनेवाली सरकार भारतीयों का यहाँ रहना पसन्द नहीं करती और उसे ऐसी इल्लत मानती है, जिससे जल्दी से जल्दी छुटकारा पा लेना चाहिए। खैर, हमें निःसंकोच होकर कह देना चाहिए कि हम इस निर्णयकी परवाह नहीं करते, बल्कि उसका स्वागत करते हैं। अब हमें दिखाना है कि हम किस धातुके बने हैं । जो समाज अपने युवकोंके विकासके प्रति सजग हो वह केवल इस कारण उनकी उपेक्षा नहीं होने देगा कि किसी गैर संस्थाने उनकी सहायता करनेसे इनकार कर दिया है। जब जनरल हेटसॉंगन फ्री स्टेटके अंग्रेजी भाषी वर्गके बच्चोंको अंग्रेजी पढ़ने का कोई भी अवसर न देनेका इरादा किया तो उन लोगोंने जवाब में निजी स्कूल- खोले और जहाँ यह सम्भव नहीं हुआ वहाँ अपने बालकोंके लिए जिस शिक्षणको वे सर्वोत्कृष्ट समझते थे उसे देनेकी अन्य व्यवस्था की । जोहानिसबर्ग में हमारा अपना एक भी ऐसा स्कूल नहीं है जहाँ हमारे बच्चोंको अच्छी शिक्षा दी जा सके। हमारा विचार तो यह है कि स्कूलके संस्थापकोंको चाहिए कि वे चुपचाप न बैठें, अपना स्कूल खोल दें और उसे सरकारी सहायता के बिना ही चलाकर दिखायें । वस्तुतः अगर इसका कोई जोरदार व्यवस्थापक-मण्डल बन जाये तो हमें पूरा भरोसा है कि यह Gandhi Heritage Portal