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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/३०१

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" एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला " २६५ अधिकारीके जिम्मे ही छोड़ आये । अधिकारीने मामलेके सम्बन्धमें मालिकसे पूछा । उसने इस बात से साफ इनकार कर दिया कि उसने बच्चेकी देख-भाल नहीं की, और लापरवाहीके लिए उसकी माँको दोषी ठहराया। अस्पतालमें डॉक्टरने बच्चेकी मृत्युकी रिपोर्ट तो दी, लेकिन उसकी हालत इतनी बुरी कभी नहीं समझी कि वह उसका विशेष उल्लेख करता । - हमारे सामने ये परस्पर विरोधी बयान हैं और अब हम इन्हें जनताके सामने रखते हैं कि वही निर्णय करे कि अधिक सम्भावना किस बातकी है- • इसकी कि एक माँ - जिसका बच्चा दैवयोगसे जल गया है, जानबूझकर उसके प्रति लापरवाही बरतेगी और उसकी शुश्रूषा करनेसे इनकार कर देगी या इसकी कि मालिक [ झूठका सहारा लेकर ] अपनेको एक गम्भीर आरोपके परिणामोंसे बचानेकी कोशिश करेगा। और ऐसे मामलोंमें डॉक्टरोंकी स्थिति भी क्या है ? उनकी नियुक्ति भारतीय प्रवासी न्यास निकाय ( इंडियन इमिग्रेशन ट्रस्ट बोर्ड) की ओरसे होती है, और इस न्यासके सदस्य होते हैं खेतों और बागानोंके मालिक । कोई भी आदमी यह आसानीसे समझ सकता है कि ये डॉक्टर ऐसे मामलोंकी रिपोर्ट देनेको बहुत ज्यादा उत्सुक न होंगे जिनसे उन्हें रोजी देनेवाले लोगोंका दोष प्रकट होता हो। इसलिए हमें इस बातको अधिक महत्व नहीं देना है कि बच्चेकी नाजुक हालत के बारेमें रिपोर्ट नहीं की गई। यह तो सर्वविदित है कि इन डॉक्टरोंपर सरकारका कोई नियन्त्रण नहीं है । हमारा खयाल है कि इस परिस्थितिके कारण ऐसी अनेक दर्दनाक घटनाएँ छिपी रह जाती हैं । और मालिकोंका हाल क्या है ? जदुबंसी बताती है कि चार भारतीयों - दो औरतें, दो मर्द - और चार वतनियोंको एक ही कमरेमें अपना भोजन बनाना पड़ता था, और यह कमरा भी अस्तबलका एक हिस्सा था। भारतीयों में से दो विवाहित थे और दो अविवाहित । किन्तु, सभीको एक ही कमरे में सोना पड़ता था । कुछ महीने पूर्व संरक्षकके विभागके निरीक्षक वैलरने इस स्थानका मुआयना करके यह सारा हाल देखा था । उसने मालिकको कुछ सुधार-परिवर्तन करनेका आदेश दिया था, किन्तु स्पष्ट है, उसके निर्देशोंका पालन नहीं किया गया। इस प्रकार हम देखते हैं कि मालिक कोई ऐसा आदमी नहीं है जिसे अपने भारतीय मजदूरोंके हितका तनिक भी खयाल हो । और केवल इतना कहना उसपर कृपा करना ही है । - खैर, बादमें यह हुआ कि संरक्षकने मालिकको बहुत समझाया बुझाया कि वह उस महिलाको तबादला करके, कहीं और भेज दे, क्योंकि स्पष्ट था कि वह किसी कारण वश वहाँ रहकर काम नहीं करना चाहती थी । किन्तु, मालिकने इनकार कर दिया और लगता है, संरक्षक महोदय इससे आगे कोई संरक्षण नहीं दे सके। पुलिसने जदुबंसीको गिरफ्तार कर लिया और उसे [ अपने मालिकके यहाँसे ] भागने के अपराधमें १. इंडियन ओपिनियनके सम्पादकीय स्तम्भों में कई बार इस बातकी माँग की गई थी कि इस निकाय में भारतीयोंका भी प्रतिनिधित्व होना चाहिए और उपनिवेश-कार्यालयके नाम लिखे दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिके १७ जून, १९११ के प्रार्थनापत्र में भी श्री पोलकने यही अनुरोध किया था; देखिए परिशिष्ट ८ । Gandhi Heritage Portal