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६. तार : जोहानिसबर्ग कार्यालयको

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अप्रैल ५,१९११

गांधी
जोहानिसबर्ग

सचिवने वैकल्पिक प्रस्ताव माँगे जो लिख रहा हूँ। कल दे दूंगा। विकल्प टान्सवाल कानून में संशोधन ‌।

गांधी

मूल अंग्रेजी तारकी प्रति (एस० एन० ५४११) से।

७. कुमारी मॉड पोलकके नाम लिखे पत्रका अंश[१]'

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अप्रैल ५, १९११

एक और चीज है जिसके कारण ट्रान्सवालके सैकड़ों भारतीय पूरी तरह बरबाद भले न हों उन्हें बहुत अधिक कष्ट होनेकी सम्भावना तो है ही; और वह यह है कि सन् १९०८ के स्वर्ण कानून (ट्रान्सवाल) के खण्ड १३० में एक यह व्यवस्था की गई है कि किसी एशियाई अथवा रंगदार व्यक्तिको उक्त कानून द्वारा प्रदत्त किसी भी अधिकारका स्वामित्व अथवा शिकमी पट्टा प्राप्त नहीं हो सकता। मालूम हुआ है कि इस कानूनका असर कई शहरों और कस्बोपर पड़ा है। क्लार्सडॉर्पके भारतीयोंको उन जमीनोंको खाली करनेका नोटिस मिल चुका है, जिनपर वे रह रहे हैं।[२] ये नोटिस उन्हें उक्त जमीनोंके मालिकोंकी ओरसे मिले हैं; क्योंकि मालिकोंको सरकारने सूचित किया है कि वे अपने नामपर पंजीकृत बाड़ोंका उपयोग एशियाइयोंको करने के लिए देकर कानूनका उल्लंघन कर रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालयके एक फैसलेमें कहा गया है कि जिन एशियाइयोंके पास पट्टे है उन्हें, यदि उनका पट्टा इस कानूनके पास होनेके पहलेका है तो,पट्टेकी अवधिके अन्दर उनके स्थानोंसे नहीं हटाया जा सकता। लेकिन इससे मौजूदा

  1. १. इसे एच० एस० एल० पोलककी बहिन मोंड पोलकने, जो लन्दनकी दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिकी अवैतनिक सहायक मन्त्री थीं, मई ५, १९११ को उपनिवेश कार्यालयको भेज दिया था।
  2. २. सरकारी वकीलने १९०८ के स्वर्ण कानूनके खण्ड १३० के अन्तर्गत क्लावर्सडॉर्पके यूरोपीय वाड़ामालिकोंको यह नोटिस दिया था कि वे रंगदार लोगोंको बाड़े की शिकमी मालिकी भी न दें। फलस्वरूप यूरोपीय मालिकोंने अपनी भारतीय रैयतको बाड़े खाली कर देनेका नोटिस दिया था।