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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


सोराबजी[१] बार-बार लिख रहे हैं कि मुझे साम्राज्य-सम्मेलनके[२] लिए लन्दन जाना चाहिए। मैं तय नहीं कर पा रहा हूँ। यदि आन्दोलन समाप्त हो गया तो शायद यह ठीक रहे। इस स्वर्ण-कानूनकी बातको लेकर मैं परेशान हूँ। यह बहुत ही रद्दी मामला है। सम्भव है, इस सम्बन्धमें कुछ किया जा सके। यदि संघर्ष समाप्त नहीं होता तो मुझे अपना जाना बिलकुल असम्भव' लगता है। सोराबजी तुमसे इस सम्बन्धमें बातचीत कर लें। मैंने मॉडको स्वर्ण-कानूनके सम्बन्धमें हिदायतें दे दी है और यह सुझाव दिया है कि वह मेरी टिप्पणियोंकी प्रतिलिपि तैयार करके उपनिवेश कार्यालय तथा भारत-कार्यालयको भेज दे।[३]

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४१९) की फोटो-नकलसे।

भारतीय प्रवासियोंकी संख्याको सीमित करनेकी बात" को गांधीजीने केवल ट्रान्सवालके संदर्भमें स्वीकार किया है और गांधीजीकी इस स्वीकृतिके आधारपर - नेटालके भारतीयोंसे यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि उन्हें आज जो अधिकार प्राप्त है, उनसे वे अपने आपको वंचित कर लें।"-रिचने भी लिखा कि यह तो ठीक है कि प्रवासी-विधेयक “१९०७ के प्रवासी अधिनियम तथा पंजीयन कानूनको रद कर देता है, लेकिन यह फ्री स्टेटके कानूनको लगभग फिरसे लागू कर देता है. . . और फ्री स्टेटका कानून भारतीयों के लिए बड़ा अपमानजनक है।" उन्होंने यह आश्वासन दिया कि अगर विधेयकमें संशोधन करके..... भारतीयों द्वारा उठाई गई आपत्तियोंका निराकरण कर दिया जाता है...तो वह आन्दोलन, जो आपको नागवार गुजरता है, समाप्त हो जायेगा. ..। संघके किसी भी हिस्से में प्रजातिगत प्रतिबन्ध किसी भी हालतमें नहीं होना चाहिए।" देखिए. इंडियन ओपिनियन, १५-४-१९११ ।

  1. १. सोराबजी शापुरजी अडाजानिका; दक्षिण आफ्रिका संघर्षका दूसरा दौर इन्हींसे प्रारम्भ हुआ था। शिक्षित भारतीयोंके अधिकारोंकी परीक्षा लेनेके खयालसे उन्होंने कई बार ट्रान्सवालमें प्रवेश किया और सबसे ज्यादा दिनों तक जेल तथा निर्वासन भोगा । सन् १९१२ में गांधीजीने उन्हें वकालत पढ़नेके लिए इंग्लैंड भेजा। उनके खर्चका जिम्मा डॉ० मेहताने उठाया था। जिन दिनों वे इंग्लैंडमें थे, श्री गोखलेने उन्हें सर्वेट्स ऑफ़ इंडिया सोसाइटीमें शामिल होनेको आमन्त्रित किया था। इंग्लैंडसे लौटकर वे फिर ट्रान्सवालमें भारतीय समाजकी सेवामें लग गये। दुर्भाग्यसे असमय ही जोहानिसबर्गमें उनका देहावसान हो गया; देखिए बण्ड ८,९ और दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रह का इतिहास, परिच्छेद २९ ।
  2. २. यह सम्मेलन मई २२, १९११ को होनेवाला था; देखिए. “ पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको", पृष्ठ २७ ।
  3. ३.देखिए पिछला शीर्षक ।