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११. पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको

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गुरुवार, [अप्रैल ६, १९११]


प्रिय रिच,

फेरार,[१] चैपलिन,[२] जैगर, सी० पी० रॉबिन्सन[३] आदिसे मिल चुका हूँ। फेरारने सबसे अधिक सहानुभूति दिखाई। सभी मानते हैं कि फ्री स्टेट-सम्बन्धी तर्क स्वीकार कर लिया जाना चाहिए।

लेनसे लगभग आधा घंटा बात की। उन्होंने मेरे मसविदेपर[४] एक निगाह डाली और कुछ परिवर्तन[५] सुझाये। आशा करता हूँ, आज रातको उसे टाइप कर लूंगा और उनको भेज दूंगा। प्रतिलिपि तुम्हारे पास भेजूंगा।

संघकी[६] समितिको बैठकमें जा रहा हूँ।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी


[अंग्रेजीसे]

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें लिखित मूल पत्र (एस० एन० ५४२३) की फोटो-नकल से।

  1. सर जॉर्ज फेरार (१८५९-१९१५); ईस्ट रैड प्रोप्रायटरी माइन्सके अध्यक्ष; उत्तरदायी शासन दिये जानेके पहले और बाद भी ट्रान्सवाल विधान-परिषद्के सदस्य; संघ-संसदके सदस्य और प्रगतिवादी दलके एक नेता।
  2. ड्रमंड चैपलिन; संघ विधान-सभा और प्रगतिवादी दलके सदस्य । ये टान्सवाल प्रवासी कानूनके विरुद्ध भारतीयोंकी कुछ शिकायतोंके कायल थे। भारतीय राहत विधेयक (इंडियन रिलीफ बिल)के पक्षमें विरोधी दलकी ओरसे बोलनेवाले ये प्रमुख व्यक्ति थे।
  3. संव-संसदकी सदस्यताके एक उम्मीदवार ।
  4. यह उपलब्ध नहीं है ।
  5. अगले शीर्षकके परिशिष्ट 'क' और 'ख' में लेन द्वारा सुझाये गये परिवर्तन दिये गये हैं। यहाँ तात्पर्य अवश्य ही उन्हीं परिवर्तनोंसे है। रिचके नाम लिखे अपने ७-४-१९११ के पत्र (पृष्ट ११-१२) में गांधीजीने ऐसा बताया भी है।
  6. केप ब्रिटिश भारतीय संघ; देखिये खण्ड १०, पृष्ठ ४६६, पा०टि०३।