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१३. पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको

बिटेनसिंगल [स्ट्रीट
केप टाउन]
अप्रैल ७, १९११

प्रिय रिच,


कुमारी श्लेसिनसे[१] कहो कि मुझे पिछले दो दिनोंमें उसका कोई पत्र नहीं मिला है। मेरा खयाल है कि उसने सोमवार और मंगलवारके पत्र नहीं लिखे। कुछ ऐसा भी शक होता है कि पत्र कहींके-कहीं न पहुँच गये हों।

लेनके नाम लिखा अपना पत्र[२] संलग्न कर रहा हूँ। मैने कल लेनसे लम्बी बातचीत की। जो मसविदा में ले गया था, उन्होंने उसमें परिवर्तन सुझाए। मैं तुमको परिवर्तनोंके बाद जो नकल बनी उसकी प्रतिलिपि भेज रहा हूँ। तुम्हें यह जानकर प्रसन्नता होगी कि इसे खुद मैंने टाइप किया है। मैंने हिरानन्दका टाइपराइटर मांग रखा है। मैं इस पत्रको लेनके दफ्तरमें पूरा कर रहा हूँ। उन्होंने अन्तिम वाक्यको[३] छोड़ देनेका सुझाव दिया था, क्योंकि उनके खयालमें, इसका अर्थ धमकी देना है। मैंने उन्हें बताया कि इसे नहीं छोड़ा जा सकता; और मैंने यह भी साफ-साफ कहा कि जबतक स्त्रियोंपर कर लगाया जाता है, जबतक ट्रान्सवालमें भारतीय जमीन- जायदाद आदि नहीं रख सकते, तबतक मैं चैन नहीं ले सकता। मैंने यह भी काफी स्पष्ट कर दिया कि यदि क्लार्क्सडॉर्पमें स्वर्ण-कानूनके अन्तर्गत ज्यादतियाँ की गई तो मैं सत्याग्रह छेड़नेकी सलाह देनेमें न झिझकूँगा। हम एक-दूसरेसे बिलकुल खुलकर बातें कर रहे थे। तुम्हें मेरे हस्ताक्षरयुक्त संशोधित पत्रमें कोई महत्वपूर्ण परिवर्तन नहीं मिलेगा। इसकी दूसरी प्रतिलिपि मैंने लेनके दफ्तरमें टाइप की है। उन्होंने मुझे

  1. सोजा इलेसिन; एक यहूदी लड़की जिसका “ चरित्र स्फटिकके समान उज्ज्वल और साहस योद्धाको मात करनेवाला" था। सोलह वर्षकी अवस्थामें उसने स्टेनो-टाइपिस्टकी हैसियतसे गांधीजीके साथ काम करना शुरू किया और फिर कई वर्षों तक उनकी निजी सचिव रही। इंडियन ओपिनियनके काममें भी वह जब-तब हाथ बटाती थी और भारतीयों के मामले में उसकी बड़ी दिलचस्पी थी। “सत्याग्रहके दिनोंमें जब लगभग सब लोग जेलमें थे, तब वह अकेले ही आन्दोलन चलाती रही थी। उसे हजारोंकी व्यवस्था करनी पड़ती थी, अनेक लोगोंसे पत्र-व्यवहार करना पड़ता था, इंडियन ओपिनियनकी भी देख-भाल करनी पड़ती थी; फिर भी वह कभी थकती नहीं थी।" महिला मताधिकारको भी वह प्रबल समर्थक थी, और ट्रान्सवाल भारतीय महिला संघकी तो जान ही थी। देखिए दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २३ और आत्मकथा, भाग ४, अध्याय १२ ।
  2. अप्रैल ७, १९११को लिखा पत्र, जिसकी एक प्रति गांधीजीने रिचको भेजनेका वादा किया था । देखिए “ पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको”, पृष्ठ ८ ।
  3. देखिए पिछला शीर्षक।