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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

बिलकुल गोपनीय रूपसे बताया है कि वैकल्पिक समाधान स्वीकार कर लिया जायेगा। वैसे उन्होंने यह भी कहा कि अभीतक फ्री स्टेटवालोंसे जे० सी० एस० की सांठ-गाँठ कायम है। वे मेरे पत्रकी प्रतीक्षा अत्यन्त उत्सुकतासे कर रहे थे; इसे उनके पास ले जानेमें मुझे कुछ देर हो गई थी, क्योंकि मैं गत रातको स्मार्टसे बातचीत करने में लगा रहा। उन्होंने मेरी बात बहुत धैर्यसे सुनी। प्रातःकाल केम्बे ऐंडर्सनके आनेसे काम रुक गया। यह पत्र लिखते समय तक मुझे ऐसी आशा बँध गई है कि कुछ दिनोंमें ही दूसरा प्रस्ताव[१] कानून बन जायेगा।

मैंने समस्त समाजकी स्वीकृतिके सम्बन्धमें जो उल्लेख किया, उसे प्राप्त करनेके लिए मैं तुम्हें तार[२] कर चुका हूँ; यों यह बात वहाँ, यहाँ और नेटालमें पहले ही स्वीकार की जा चुकी है। नेटालने तो परिपाटीको छोड़कर केपके प्रस्तावोंकी स्वीकृतिका तार दिया।

इन स्थितियोंमें, मैं इस समय हरगिज रवाना नहीं होऊँगा। सच कहो तो सदस्योंसे मिलना-जुलना समाप्त किये बिना मैं तुम्हारी अनुमति रहते हुए भी रवाना नहीं हो सकता था।

पत्रके साथ 'टाइम्स' को कतरन[३] भेज रहा हूँ। स्पष्ट है कि इसमें स्मट्सने एक नये समाधानका संकेत पहले ही से दे रखा है।

मुझे आशा है कि मुझे इंग्लिश मेल[४] कल दोपहरको मिल जायेगा।

मुझे स्मार्टसे अब्दुर्रहमानने[५] मिलाया। उन दोनोंमें घनिष्ठता-सी जान पड़ी। मैं लॉर्ड क्रू से भी मिला, यद्यपि अब्दुर्रहमान भेंट होने तक नहीं ठहरे।

तुम यह पत्र वहाँके नेताओंको तो समझा ही दोगे।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४२८) की फोटो-नकलसे।

  1. देखिए पत्र: ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ९-१० ।
  2. देखिए “तार : जोहानिसबर्ग कार्यालयको", पृष्ठ १३ ।
  3. यह उपलब्ध नहीं है।
  4. तात्पर्य शायद उन पत्रोंसे है, जो इंग्लैंडसे येल्स्टॉय फार्मके पतेपर आये थे और फिर गांधीजीको केप टाउनके पतेपर भेज दिये गये थे।
  5. डॉ० अब्दुर्रहमान; जन्मसे मलायी; केप टाउनके एक प्रसिद्ध चिकित्सक, आफ्रिकी राजनीतिक संघके अध्यक्ष और केप टाउन नगरपालिका तथा संघ-पूर्वकी केप विधान-सभाके सदस्य; सन् १९०९में "रंगदार लोगों के शिष्टमण्डलके साथ इंग्लैंड गये; देखिए खण्ड ९, पृष्ठ २७२ । फरवरी १९१०में केप टाउन नगरपालिका परिषद्के इंग्लैंडके युवराजका स्वागत करनेके प्रस्तावका विरोध किया और कहा, “ मैं उसे शोक-दिवस मानूँगा।” देखिए, खण्ड १०, पृष्ठ १७७ और १७९ और दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास, अध्याय २ ।