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पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको


मैंने अबतक स्वभावत: यही माना है कि जो प्रस्ताव स्वीकृत होगा उसमें कुछ एशियाइयोंको, जिनकी संख्या वर्षमें छः से अधिक न होगी, ट्रान्सवालका खयाल करके शिक्षा-परीक्षामें पास किया जायेगा, और उन्हें प्रसंगानुसार संघमें या ट्रान्सवालमें प्रवेश करने दिया जायेगा।

देखता हूँ, क्रिश्चियन बोथाने विधेयकमें एक कड़ा संशोधन[१] रखा है; इसे भारतीय दृष्टिकोणसे स्वीकार करना असम्भव है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४४०) की फोटो-नकल और १५-४-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से भी।

१७. पत्र: एल० डब्ल्यू० रिचको

७, बिटेनसिंगल [स्ट्रीट
केप टाउन]
अप्रैल ८, १९११

प्रिय रिच,

तुम्हारा पत्र मिला। आशा है, माउंटेन व्यूमें[२] तुम्हारी ठीक व्यवस्था हो गई होगी। मेरा खयाल है, तुम और हेराल्ड[३] दोनों थोड़ी बागवानी किया करो, हेराल्ड विशेष रूपसे।

मैं वापसीमें एक दिन किम्बलें रहनेका प्रयत्न करूंगा। मैं कोंकणियोंके बारेमें नूरुद्दीनसे बातचीत करूँगा।

बोथाका संशोधन[४] यह है :

इस अधिनियमके इस (२८) या किसी दूसरे खण्डमें समाविष्ट किसी धारासे

ऑरेंज फ्री स्टेटकी कानूनी पुस्तकके अध्याय ३३ की कोई धारा रद न होगी।

सोचो कि मुझे सब प्रकारके आश्वासन देनेके बाद ऐसा हुआ। फिर भी मैं प्रसन्न हूँ। इस संशोधनसे विधेयक मर जाता है और यदि जनरल स्मट्स इस प्रश्नका निपटारा करना चाहते हैं तो उन्हें ट्रान्सवालके अधिनियममें संशोधन करना पड़ेगा।

मैं आज किसी सदस्यसे नहीं मिल सका हूँ। लाहौरके रेवरेंड ऑलमेटने प्रात:- कालका मेरा सारा समय ले लिया। वे बिशप लेफॉयके आदमी है और जब पोलक भारतमें थे तब उन्होंने कुछ काम किया था।

  1. देखिए अगला शीर्षक ।
  2. जोहानिसबर्ग में कैलनबैकका मकान ।
  3. रिचका पुत्र ।
  4. देखिए “तार : जोहानिसबर्ग कार्यालयको", पृष्ठ १४ और पिछला शीर्षका ।