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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

वर्तमान विधेयकको छोड़कर आपके वैकल्पिक समाधानको स्वीकार कर लेंगे। किन्तु अब आप कोई नई बात न उठायें।" मैने कहा : "श्री डंकन, आश्चर्य है कि आप भी ऐसा कह रहे हैं ! आपने तो स्वयं हमारी स्थितिको बहुत उचित रूपमें प्रस्तुत किया है।" उन्होंने कहा : "हाँ, मैंने देखा है, आप मेरा हवाला देते रहे हैं। किन्तु आपने उस बातको सदा आगे नहीं रखा। मुझे कई बार लगा कि आप उसे गौण रखते हैं।' मैंने कहा : “मुझे कभी-कभी ऐसा करना ही पड़ता है। हमें अवसरके अनुसार इस या उस मुद्देको प्रमुखता देनी होती है। प्रत्येक भाषण या पत्रमें सारी तफसीलें नहीं रखी जा सकतीं। नये मुद्दे तो सदा जनरल स्मट्सने उठाये हैं और हर बार हमारी मांगोंसे कम दिया है।" उसके बाद उन्होंने यह जानना चाहा कि बच्चोंके सम्बन्धमें मेरी क्या माँग है; क्या मैं यह चाहता हूँ कि इनको प्रमाणके बिना ही आने दिया जाये, आदि। मैंने उनको इस मुद्देके सम्बन्धमें आश्वस्त किया। किन्तु मै यह तो समझ ही गया कि जनरल स्मट्स बदकिस्मतीसे इसके पहले उनसे मिल चुके हैं। और यह भी अच्छा हुआ कि कल मुझसे बातें करते समय उनके दिमागमें जनरल स्मट्सको वातोंकी याद ताजी थी। इस अनुभवके बाद मैंने यहाँ तबतक डटे रहनेका निर्णय किया है जबतक विधेयक पारित न हो जाये या मुझे यह निश्चय न हो जाये कि अब कुछ करना शेष नहीं रहा। यह बात लगभग तय मानी जा सकती है कि सर्वसामान्य विधेयककी अन्त्येष्टि क्रिया हो गई है और अब मुझे वैकल्पिक प्रस्तावक स्वीकृत होनेकी पहलेसे अधिक आशा है।

हृदयसे तुम्हारा,
मो० क० गांधी

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४४१) की फोटो-नकलसे।

२०. पत्र : एल० डब्ल्यू. रिचको

[केप टाउन]
सोमवार [अप्रैल १०, १९११]

प्रिय रिच,

मैं आज अभीतक (दिनके दो बजे तक) बाहर नहीं निकला। केवल पत्र[१] लिखता रहा हूँ।

मुझे तुम्हारे तीन पत्र मिले।

तुम तय समझो कि यह भला जनरल जो कुछ भी देगा, निश्चय ही वह एक झूठी रियायत होगी। उसे सच करना तो हमारा काम होगा। वे अपने वश-भर मेरे हाथोंमें कुछ भी न देंगे।

  1. इस पत्रके अलावा सिर्फ इसके आगेका एक तार और एक पत्र ही उपलब्ध है।