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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
दक्षिण आफ्रिकाको इस पागलपन में न पड़ना चाहिए। वे स्वयं अंग्रेज हैं; फिर भी ब्रिटेनकी नौसेनापर आधारित महत्ता उन्हें नहीं चाहिए। वे यह मानते हैं कि अंग्रेजोंकी महत्ताका कारण उनकी सेना नहीं है। उन्होंने जनरल बोथा और दूसरे लोगोंको सलाह दी कि दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश नौसेनाकी योजनासे बिलकुल सम्बन्ध न रखे। श्री मेरीमैन मानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें जो ब्रिटिश सेना रहती है, वह भी अनावश्यक है ।
[ गुजरातीसे ] इंडियन ओपिनियन १५-३-१९१३
जनरल बोथा सचमुच किसान हैं, इसमें सन्देह नहीं है । यह तो सभी जानते हैं कि उनके पास हजारों एकड़ जमीन है । परन्तु वे इसी से किसान नहीं बन जाते । नेटालमें एक बड़ी कम्पनी है, जिसके पास लाखों एकड़ जमीन है; किन्तु उस कम्पनीका एक भी व्यक्ति किसान नहीं है। वे सभी किसानोंके बलपर पैसा कमाने- वाले लोग हैं । परन्तु जनरल बोथा तो स्वभावसे ही किसान लगते हैं । वे अपनी जमीन- पर स्वयं काम करते हैं । उनको जमीनकी अच्छी जानकारी है । वे विभिन्न फसलोंके सम्बन्धमें सब बातें जानते हैं। घोड़ों और भेड़ोंके तो वे विशेषज्ञ ही माने जाते हैं। इतना ही नहीं उनके भाषणोंमें भी खेतीकी महिमाका उल्लेख होता है। उनका यह दृढ़ विश्वास जान पड़ता है कि दक्षिण आफ्रिकाका उद्धार सोनेकी खानोंसे नहीं होगा । कुछ लोग तो ऐसा भी मानते हैं कि सोनेकी खानोंका सोना कुछ बरसोंमें समाप्त हो जायेगा और जोहानिसबर्ग आदि शहरोंकी दशा वैसी ही हो जायेगी जैसी कुछ अमेरिकी शहरोंकी हुई है। इस विषयमें कुछ भी क्यों न हो, परन्तु जनरल बोधाने अभी हालमें जो भाषण दिया है, वह पठनीय है। उन्होंने उसमें अपना यह इरादा व्यक्त किया है कि यदि गोरे किसान अपनी जमीनोंमें स्वयं खेती नहीं करते तो उनसे उनकी जमीनें छीनकर योग्य लोगोंको दे दी जायेंगी । अवश्य ही दूसरे गोरे उन्हें यह कार्रवाई न करने देंगे। इसलिए इन विचारोंपर अमल तो होनेवाला नहीं है; फिर भी इन विचारोंकी कीमत विचार रूपमें तो है ही । जनरल बोथा, जिन्हें खेतीके सम्बन्धमें इतना उत्साह है, अपने प्रभाव और अधिकारसे खेतीको खूब बढ़ावा दे सकते हैं। हम तो चाहते हैं कि हम लोगोंमें भी इस तरहका कुछ उत्साह उत्पन्न हो और हम भी खेती की ओर ध्यान देने लगें । [ गुजरातीसे ] इंडियन ओपिनियन, १५ -३ - १९१३