हम वनस्पतिको प्रायः बिना पकाये खा नहीं सकते । तो भी यदि मनुष्य को पकाया हुआ अन्न खाना है और साग-सब्जियोंके बिना भी उसका काम नहीं चल पाता,तो उनमें कौन-कौन-से पदार्थ ठीक हैं, इसकी छानबीन कर लेना उचित होगा ।
सारे अनाजोंमें गेहूँ सर्वोपरि हैं। अकेला गेहूँ खाकर भी मनुष्य अपना निर्वाह कर सकता है। उसमें पोषण प्रदान करनेवाले सारे तत्व समुचित परिमाण में हैं । उसके अनेक प्रकारके पदार्थ भी बन सकते हैं और पचने में भी वह सहज है। बच्चोंके लिए तो तैयार खाद्य मिलते हैं, उनमें भी थोड़ा परिमाण गेहूँका होता ही है। गेहूँकी श्रेणीमें ही वाजरा, ज्वार और मक्की आते हैं, और इन सभीसे रोटी या चपाती बनाई जा सकती है; यद्यपि ये सारे अनाज गेहूंकी बराबरी नहीं कर सकते। गेहूं का सेवन किस प्रकार किया जाये, इसे समझ लेना चाहिए। मैदा, जिसे हम मिल-फ्लोरके नामसे जानते हैं, एकदम बेकाम वस्तु है । उसमें कोई सत्व नहीं होता। उसके सम्बन्ध में डॉक्टर एलिन्सन यह कहते हैं कि उन्होंने एक कुत्तेको इस खुराकपर रखा और वह मर गया। पर दूसरे आटेकी रोटीपर कुत्ता बराबर जीता रहा। सफेद आटे में से गेहूँका दलिया निकाल दिया जाता है और स्वाद तथा पौष्टिक तत्व तो दलियेमें होता है । वैसे मैकी रोटीका प्रचलन बहुत है। इसका कारण यह मालूम होता है कि उसके साथ खानेपर दूसरी चीजोंका स्वाद और भी खुल जाता है। उदाहरणार्थ पनीरको खानेवाले उससे पौष्टिक तत्व प्राप्त करते हैं । किन्तु वे उसे ज्यादातर रोटीके
साथ खाते हैं। मैदेकी रोटी अच्छी नहीं होती। वह चीमड़ बनती है और उसमें न स्वाद होता और न कोई सत्व । सबसे अच्छा आटा तो वह है जो ठीकसे साफ किये गये गेहूँको पीसकर घरमें तैयार किया गया हो, और वह भी यदि पत्थर की चक्की से हाथसे पीसा गया हो तो सबसे अच्छा । जिन्हें पत्थरकी साधारण चक्की ठीक न पड़े वे थोड़ा पैसा लगाकर ऐसी यन्त्र चक्की घरमें लगा लें जिसका चक्का हाथसे घुमाया जा सकता हो । अथवा वे बाजारसे बिना छना बोर-मील लेकर उसका उपयोग कर सकते हैं । पिसा हुआ आटा, बिना छना ही, उपयोगमें लेना चाहिए। इस आटेकी रोटी सुस्वाद और पौष्टिक होती है। यह सफेद आटेसे अधिक दिनतक टिकता भी है। इसमें सत्व अधिक होता है, इसलिए इसका मैदेसे कम परिमाणमें उपयोग करने पर भी काम चल जाता है ।
बाजारकी रोटी बिलकुल बेकाम होती है, यह बात ध्यान में रखनी चाहिए। वह चाहे सफेद हो चाहे भूरी, उसमें मिलावट होती है। और फिर वह खमीर डाल-कर आटेको सड़ाकर बनाई जाती है। यह अन्य बड़ा दोष है । आटेको फुलाकर बनाई हुई रोटी हानिकारक होती है, ऐसा अनेक अनुभवी लोगोंका कहना है। बाजारकी रोटीको तैयार करते समय उसपर माँड और चरबी चुपड़ी जाती है, इस कारणसे भी
वह हिन्दू तथा मुसलमान, दोनोंके लिए त्याज्य होनी चाहिए।घर पर पकाई रोटी या चपातीके बजाय बाजारकी रोटीसे पेट भरना तो अहदीकी साफ निशानी है ।
गेहूँ खानेका दूसरा अच्छा और सरल तरीका यह है कि गेहूँको मोटा-मोटा दलकर या दलवाकर उसका दलिया बनाकर खाया जाये। दलियेको पानीमें खूब