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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५६९

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परिशिष्ट ११ साम्राज्य-सम्मेलनमें उपनिवेशीय भारतीयोंके सम्बन्धमें लॉर्ड क्रू का भाषण लन्दन जून १९, १९११ क १९ जून, १९११ को लन्दन में उपनिवेश मन्त्री माननीय एल० हरकोर्टकी अध्यक्षता में साम्राज्य-सम्मेलन हुआ था । दक्षिण आफ्रिका संघकी ओरसे उसमें जनरल एल० बोथा ( संघके प्रधानमन्त्री), एफ० एस० मलान ( शिक्षा मन्त्री) और सर डेविड डी विलियर ग्राफ (सार्वजनिक निर्माण, डाक और तार मन्त्री) सम्मिलित हुए थे । उपनिवेशों में रहने- वाले भारतीय प्रजाजनोंकी समस्याओंके सम्बन्धमें एक ज्ञापन भी प्रचारित किया गया था । जिन विषयोंपर विचार हुआ उनमें न्यूजीलैंड के प्रधान मन्त्रीका एक प्रस्ताव भी था । [ इस प्रस्तावके द्वारा ] पहले तो वे यह कोशिश कर रहे थे कि रंगदार प्रजातियोंको उनके ही क्षेत्रों तक सीमित रखा जाये किन्तु बादमें उन्होंने अपने प्रस्तावका विषय बदल कर उसे 'ब्रिटिश और विदेशी जहाजरानीके सम्बन्ध में स्वशासन-प्राप्त उपनिवेशोंके लिए ज्यादा व्यापक कानूनी सत्ता रखनेवाले अधिकार' कर दिया । सम्मेलनकी कार्यवाही भारत-मन्त्री लॉर्ड क्रू के भाषणसे आरम्भ हुई जिसमें उन्होंने उपनिवेशों में रहनेवाले भारतीयों के सम्बन्धमें कुछ सामान्य बातें कहीं। उनके भाषणके कुछ अंश नीचे दिये जाते हैं : • यदि कोई प्रश्न ऐसा है जिसके केवल साम्राज्यकी सुख-समृद्धिको ही नहीं, बल्कि उसके साम्राज्यत्वको ही खतरा है, तो वह है गोरी प्रजातियों और वतनी प्रजातियोंके बोचकी यह गाँठ; कारण, मैं कह चुका हूँ कि उपनिवेशों और मातृ-देश [इंग्लैंड ] के बीच ऐसा कोई प्रश्न है ही नहीं जो दोनों ओरकी सद्भावना और सुमतिसे तय न किया जा सके, फिर चाहे वह वाणिज्यका प्रश्न हो, चाहे प्रतिरक्षाका और चाहे वह उन प्रश्नों में से कोई प्रश्न हो जिनपर हम यहाँ विचार करेंगे. मुझे मालूम हुआ है कि यह ज्ञापन जो मेरे सामने है, सम्मेलनके सब सदस्योंको दिया गया है, और जिन्होंने इसे पढ़ा है वे स्वीकार करेंगे कि इसमें उस प्रश्नके सामान्य सिद्धान्तों और इस उल्झनके उन विशिष्ट उदाहरणोंपर विचार किया गया है जो विभिन्न उपनिवेशों में भारतीयों के प्रवेशाधिकारके सम्बन्धमें या वहाँ आ जानेपर उनके साथ किये जानेवाले व्यवहारके सम्बन्धमें उत्पन्न हुए हैं । अब मैं पहले यह कहना चाहता हूँ कि मैं दो तथ्योंको पूरी तरह मानता हूँ; सम्राट की सरकार भी इन्हें मानती है । पहला तथ्य यह है कि साम्राज्यकी रचनाको देखते हुए इस विचारका प्रतिपादन नहीं किया जा सकता कि सम्राट के समस्त प्रजाजनोंके बीच बिल्कुल अबाध रूपसे अदला-बदली हो सकती है; अर्थात् सम्राट के प्रत्येक प्रजाजनको, चाहे वह कोई भी क्यों न हो, वह कहीं भी क्यों न रहता हो, साम्राज्यके किसी भी भागमें जाने या उससे भी अधिक वहाँ बसनेका, स्वाभाविक अधिकार है । हम इस बात को पूरी तरह स्वीकार करते हैं और भारत-कार्यालयके प्रतिनिधिके रूपमें मैं भी पूरी तरह स्वीकार Gandhi Heritage Portal