५५८ सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय प्रवासी अधिकारियों द्वारा जब-तब की जानेवाली अति है, एक प्रकारसे कुछ सफाई दी थी । प्रवासी अधि- कारियोंकी इसी कार्रवाई के समान उधर मोजाम्बिक्के पुर्तगाली अधिकारियोंका काम भी है जो संघके प्रवासी विभाग के कहनेपर देशके विधि सम्मत निवासियोंके बाल-बच्चोंको प्रवेश नहीं करने देते । इसका परिणाम क्या निकला है ? परिणाम बहुत ही गम्भीर निकला है, परन्तु मैं तो लाख सर खपानेके बाद भी नहीं समझ पाया कि उसकी ओर अधिक ध्यान क्यों नहीं दिया गया । परिणाम यह है कि जर्मन लोग भी अब हमारी नकल करने लगे हैं। जर्मन पूर्व आफ्रिकामें अब वे हमारी मिसाल देकर भारतीय- विरोधी कानून बना रहे हैं। और यदि हमें यह स्वीकार करनेपर विवश होना पड़ा कि चूँकि हम भी ऐसा ही करते हैं इसलिए एक अन्य देश द्वारा किये जानेवाले इस बहिष्कारका हम विरोध नहीं कर सकते, तो भारतीय जनता के सामने एक राष्ट्रके रूपमें हमारी क्या स्थिति होगी ? कुछ और बातें भी हैं जो अपेक्षाकृत छोटी, पर बहुत ही गम्भीर हैं। उदाहरण के लिए, नेटाल्के व्यापारिक परवाना कानूनोंका अमल स्पष्ट रूपसे इस उद्देश्य से करनेकी प्रवृत्ति उत्तरोतर बढ़ती जा रही है कि उनसे भारतीयोंके नेटालमें रहनेके वे सारे अधिकार, जिनपर आजतक किसीने कोई आपत्ति नहीं की, छिन जायें और इस प्रकार वे इस देशको छोड़ने- पर विवश हो जायें । मैं जिसका जिक्र कर चुका हूँ, इस विलम्बके कालमें स्वर्ण-कानूनको और ट्रान्सवालके कस्बा -अधिनियमको भी इसी ढंगसे लागू किया जा रहा है । उस अधिनियम के अन्तर्गत बनाये जानेवाले विनियमोंकी प्रवृत्ति भारतीयोंको कुछ निश्चित बस्तियों में रहनेपर विवश कर देना है, हालाँकि स्वयं ये विनियम ही अवैध प्रतीत होते हैं। चीनीकी गुलामीमें भी यही होता था । उसकी एक परिस्थिति यह थी कि चीनी मजदूरों को कुछ निश्चित बस्तियोंमें रहना पड़ता था । तब फिर भारतीयोंको कुछ निश्चित बस्तियों में रहनेपर विवश करनेकी इस जानी-बूझी कोशिशकी सफाईमें सरकार क्या कहना चाहती है, वह इसका क्या औचित्य ठहराती है ? ट्रान्सवालके विधि सम्मत भारतीय निवासियोंके उत्पीड़नके लिए इस विधेयकको किस ढंगसे प्रयुक्त किया गया है इसके मैं अनेक उदाहरण पेश कर सकता हूँ । हाँ, उसके लिए " उत्पीड़न " के अलावा और किसी शब्दका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता । मैं जानना यह चाहता हूँ कि क्या सम्राट की सरकार इन उत्पीड़क कार्यों पर निगाह रखती आई है और क्या उसने सम्राटकी प्रजा, हमारे उन भारतीय सह-प्रजाजनोंकी रक्षाके लिए कुछ किया भी है जो दक्षिण आफ्रिकामें रहते हैं और जिनको वहाँ रहनेका पूरा अधिकार है और जिस अधिकारपर कभी कोई आपत्ति नहीं उठाई गई है । मैं इसपर जोर दे रहा हूँ, क्योंकि यह मामला ऐसे प्रवासियोंका नहीं जो बिना किसी अनुमतिके देशमें आ धमके हों । और मुझे आशा है कि मेरे इस प्रश्नका उत्तर देनेवाले लॉर्ड महोदय इसका वही उत्तर नहीं देंगे जो मुझे पहले अक्सर मिलता रहा है। मैं यह कहनेकी धृष्टता करता हूँ कि सामनेकी सरकारी बेचोंके सदस्यगण उस उत्तरको ही मेरे लिए समुचित मानते हैं, परन्तु मैं जिनकी ओरसे बोल रहा हूँ उनके लिए वह समुचित नहीं । और न ऐसे किसी भी व्यक्ति के लिए समुचित है जो इस प्रश्नको संसद्के राजनीतिक दलोंकी सामान्य उखाड़-पछाइसे अलग रखकर इसपर समझदारी और साम्राज्यके दृष्टिकोणसे विचार करता हो । मुझे अक्सर जो उत्तर मिलता रहा है वह यह है कि एक स्वशासित उपनिवेशके मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता । यह उत्तर कई लोगोंको सन्तोषजनक लगता है, लेकिन वह है बड़ा सड़ा-गला-सा, एक मूढ़ता-भरा उत्तर ही । पहली चीज यह कि हस्तक्षेपका इसमें प्रश्न ही नहीं । मैं आपको मालेकावाले मामलेकी याद दिला । आप यदि एक ऐसी महिलाकी खातिर, जो यदि ब्रिटिश नागरिक थी भी तो केवल आधी ब्रिटिश नागरिक थी, न्यायालयके निर्णयको बदलवानेके लिए एक ऐसे देशकी सरकारके मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, जिसको आप किसी भी तरह बाध्य नहीं कर सकते, तो आपको निश्चय ही ऐसे हजारों व्यक्तियोंके बारेमें, जो पूरी तौरपर ब्रिटिश नागरिक हैं, कुछ करने, कुछ कहने, कुछ माँगने और किसी तरहका समझौता करनेका भी अधिकार है; और Gandhi Heritage Porta
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५९६
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