परिशिष्ट ५५९ आपको ऐसा समझौता करनेका अधिकार है, विशेष रूपले उन लोगोंके साथ जो आप ही के राष्ट्र-बन्धु हैं, जो ब्रिटिश झण्डेके नीचे हमारे सम्राटको सत्ताके अधीन है, और सबसे मुख्य बात तो यह है कि जिनके आधारभूत हित वही हैं जो हमारे हैं। यदि आप साम्राज्यके सम्पूर्ण कल्याणसे सम्बन्ध रखनेवाले मामलोंके बारेमें भी हमारे समुद्रपारके डोमीनियनोंमें रहनेवाले हमारे सजातीय बन्धुओंके साथ कोई समझौता नहीं कर सकते, तो मैं कहूँगा कि वास्तवमें साम्राज्यका कोई अस्तित्व भी नहीं रह सकता । मैं चाहता हूँ कि ईश्वर मुझे ऐसी शक्ति या इतनी समझ दे कि मैं उसके बलपर उसी प्रकार लोकमत तैयार कर सकूँ और हमारे भाग्यको भले था बुरेके लिए प्रभावित करनेवाले अखबारोंके जादूगरों को उसी तरह अपने ऊपर कृपालु बना सकूँ, जिस तरह कि मालेकावाले मामलेके सिलसिले में किया गया था। पिछले पाँच सालसे ट्रान्सवालके हमारे भारतीय बन्धुओंके मामलेका औचित्य उससे दस हजार गुना अधिक रहा है । यदि मालेकावाले मामले में लोकमत और अखबारोंके प्रभावके बलपर इस देशकी सरकारको कुछ करनेके लिए, और जिस देशपर हमारा कोई काबू नहीं है उस देशमें भी हस्तक्षेप करनेके लिए, तैयार किया जा सकता था, तो यदि मुझे वह तरकीब आती तो ट्रान्सवाल्के हमारे भारतीय बन्धुओंके मामलेमें सरकार को कितना अधिक सक्रिय बनाया जा सकता था ? आशा है कि माननीय लॉर्ड (मन्त्री) महोदयको मैंने पूरी स्पष्टताके साथ बतला दिया है कि मैं किन-किन बातों का उत्तर चाहता हूँ । [ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, ७-९-१९१२ परिशिष्ट १९ कस्बा कानून संशोधन अधिनियम (१९०८) के सम्बन्धमें साम्राज्य सरकारकी सेवामें संघके मन्त्रियोंकी टिप्पणियाँ (क) जून १६, १९११ महाविभव गवर्नर-जनरल महोदयने अपनी इसी १२ तारीखकी टिप्पणी, संख्या १५/१३९, में ब्रिटिश भारतीय संघके प्रार्थनापत्रपर और दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समिति द्वारा अपने ५ मईके पत्र में ट्रान्सवाल स्वर्ण-कानूनके खण्ड १३० के परिणामोंके सम्बन्ध में उठाये गये प्रश्नपर मन्त्रियोंके विचार माँगे हैं । उक्त टिप्पणीके साथ माननीय उपनिवेश मन्त्रीसे प्राप्त एक तार भी भेजा गया है । गवर्नर जनरल महोदयने अपनी ८ मईकी टिप्पणी में उपर्युक्त प्रार्थनापत्रको एक प्रति पहले ही भेज दी थी। अब, इस सम्बन्धर्मे मन्त्रिगण यह कहता चाहते हैं कि उनके विचार में बस्तियों और बाजारोंके बाहर सम्पत्तिका स्वामित्व प्राप्त करने या उसे किसी अन्य प्रकार से अपने कब्जे में रखने- सम्बन्धी एशियाइयोंके अधिकारके सम्बन्धर्मे १८८५ के कानून संख्या ३, और उसके बाद पास किये गये कानूनोंसे उत्पन्न स्थितिपर पुनः विचार करना आवश्यक नहीं है । - शिकायतकी ओर विशेष रूपसे ध्यान गवर्नर-जनरल महोदयको टिप्पणीक साथ संलग्न पत्रों में जिस दिलाया गया है, उसका सम्बन्ध १९०८ के बहुमूल्य और अपधातु अधिनियमके खण्ड १३० के अन्तर्गत क्लार्क्सडॉप में की गई पुलिस कार्रवाईसे है; और ब्रिटिश भारतीय संघने अधिनियमका जो उल्लेख किया है, वह मन्त्रियोंकी समझमें कुछ आया कोई व्यवस्था है ही नहीं, जिसकी शिकायत प्रार्थनापत्र में की गई है । १९०८ के कस्बा कानून संशोधन नहीं, क्योंकि उस कानूनमें वैसी Gandhi Heritage Portal
पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५९७
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