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४३. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको


७, बिटेनसिंगल [स्ट्रीट]
[केप टाउन]
अप्रैल २२, १९११

प्रिय श्री लेन,

आपका इसी २१ तारीखका कृपापत्र[१] मिला।

मुझे खेद है कि जनरल स्मट्सको ट्रान्सवालका एशियाई झगड़ा इस अधिवेशनमें तय करना असम्भव दिखाई देता है। किन्तु मैं आपके पत्रमें कही गई इस बातके लिए कृतज्ञ हूँ कि जनरल स्मट्स अवकाश-कालमें इस मामलेपर ध्यान देंगे जिससे अगले अधिवेशनमें समझौता हो सके ।

मैं भी जनरल स्मट्सकी तरह इसके लिए चिन्तित हूँ कि अनाक्रामक प्रतिरोध अब बन्द कर दिया जाये।

तब क्या मैं उनके विचारार्थ निम्न सुझाव दे सकता हूँ ताकि समझौता मुल्तवी करनेसे मेरे देशवासियोंमें जो सन्देह उत्पन्न होना निश्चित है वह दूर हो सके ?

यह आश्वासन दे दिया जाये कि:

(क) अगले अधिवेशनमें छोटाभाईके[२] फैसलेके अनुसार नाबालिग बच्चोंके अधिकारोंके संरक्षणके लिए अनावश्यक धाराओंको छोड़कर, १९०७ के अधि-

  1. देखिए गांधीजीको लिखा लेनका पत्र, परिशिष्ट २ ॥
  2. ५० ५० छोटाभाई; सन् १८९९से टान्सवालके अधिवासी; सन् १९०८के कानून ३६ के अन्तर्गत विधिवत् पंजीकृत; अपने पन्द्रह वर्षीय नाबालिग लड़केको ट्रान्सवाल लाये । लड़केका नाम अपने पिताके जनवरी, १९१०के पंजीयन प्रमाणपत्रपर अंकित था। लेकिन जब उसके बालिंग होनेपर १९०८के कानून ३६ के अन्तर्गत उसके पंजीयनके लिए अर्जी दी गई तो एशियाई पंजीयकने उसे नामंजूर कर दिया । छोटाभाईने मजिस्ट्रेट जॉर्डनकी अदालतमें अपील की, लेकिन जॉर्डनने अपील खारिज करके बालकको निर्वासित कर देनेका हुक्म दिया। फिर इस मामलेको प्रान्तीय अदालत में पेश किया गया । वहाँ मजिस्ट्रेट वेसेल्सने उनकी अर्जी तो रद कर दी, लेकिन निर्वासनके आदेशको उच्चतर न्यायालय द्वारा विचार किये जाने तक रोक रखा । अन्तमें मामला ट्रान्सवालके उच्चतम न्यायालयके सामने पेश हुआ । पूर्ण पीठने उसपर विचार किया और न्यायमूर्ति मैसनके अलावा सभी न्यायाधीशोंने अपीलके विरुद्ध मत दिया । आखिर २५ जनवरी- को दक्षिण आफ्रिकाके सर्वोच्च न्यायालयके अपील विभागने यह निर्णय दिया कि यद्यपि १९०८के कानून ३६में उन्हीं नाबालिगों के पंजीयनकी व्यवस्था है जो इस कानूनके लागू होनेके दिनसे ट्रान्सवालमें रह रहे हों या इस उपनिवेशकी सीमामें जन्मे हों, किन्तु उसमें यह नहीं कहा गया है कि जो नाबालिग बच्चे उस तारीखके वादसे कानूनन उपनिवेशमें प्रवेश करेंगे उनका पंजीयन १९०७ के कानून २की व्यवस्थाके अनुसार नहीं किया जायेगा । न्यायाधीशोंने यह भी कहा कि यह असम्भव दीखता है कि विधानमण्डल एशियाई नाबालिगोंको ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेकी तो पूरी स्वतन्त्रता दे दे, लेकिन पंजीयकको इस सम्बन्धमें कोई अधिकार नहीं दे कि उन नाबालिगोंके बालिग होनेपर वह उन्हें इस देशमें रहने दे । इस प्रकार अन्तमें अपील बहाल हो गई; देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ३३२, ३४९, ३८६-८७ और ४३२ ।