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भाषण: किम्बले में


और हितोंका खयाल रखते हुए, यूरोपीय लोगोंके दष्टिकोणका अध्ययन करते रहेंगे और उसको समझते रहेंगे।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टाइपकी हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४९६) की फोटो-नकल, सी डी० ६२८३ और २९-४-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से।

४४. भाषण: किम्बलेमें

[अप्रैल २४, १९११]

कल शामको टाउन हॉलके भोजन-कक्षमें श्री मो० क० गांधीका भाषण सुनने के लिए भारतीयोंकी एक बड़ी सभा हुई, जिसमें गोरे भी काफी संख्यामें आये हुए थे। श्री गांधी उसी समय केप टाउनसे आये थे और जोहानिसबर्ग जा रहे थे।

•महापौरने[१] श्री गांधीका संक्षिप्त परिचय दिया और उसके बाद श्री डॉसनने यह अभिनन्दनपत्र[२] पढ़ा।

श्री गांधी जब उत्तर देने के लिए खड़े हुए तब लोगोंने बड़ा उल्लास प्रकट किया। उन्होंने अपने शानदार स्वागत और सुन्दर मानपत्रके लिए सभाको धन्यवाद दिया। माननीय महापौरको इस प्रसंगपर अध्यक्षता करने के लिए धन्यवाद देते हुए उन्होंने कहा कि यह इस बातका द्योतक है कि किम्बले के जन-समाजके बीच पारस्परिक सौहार्द्र है। यह सम्मान मेरा व्यक्तिगत सम्मान न होकर उस महान कार्यकी सराहनाका प्रतीक है, जो ट्रान्सवालके अनाक्रामक प्रतिरोधियोंने किया है। उन्होंने कहा कि मुझे यह कहते हुए हर्ष होता है कि जिस जटिल प्रश्नको लेकर [भारतीय] समाजकोअकथनीय कष्ट उठाने पड़े और ३५०० से भी अधिक लोगोंको जेल जाना पड़ा, उसका हल अब निकट है। उन्होंने बतलाया कि मेरे पास जनरल स्मट्सका एक पत्र[३] है, जिसमें कहा गया है कि संसदके आगामी अधिवेशनमें भारतीय समाजको न्यायपूर्ण माँगे स्वीकार कर ली जायेंगी। उन्होंने दृढ़तापूर्वक कहा कि उक्त पत्रमें इस बातकी सरकारी स्वीकृति निहित है कि अनाक्रामक प्रतिरोध कष्टोंके निराकरणके लिए आन्दोलन करने का एक उचित मार्ग है। उन्होंने बताया कि लन्दनकी सभाओंमें भाषण देते हुए मैंने निःसंकोचभावसे कहा था कि ट्रान्सवालका अनाक्रामक प्रतिरोध आजके युगका सबसे बड़ा आन्दोलन है। आधुनिक इतिहासमें मुझे भी ऐसा उदाहरण

  1. काउंसिलर (परिषद्) डब्ल्यू० गैसन, जिन्होंने सभाकी अध्यक्षता की थी।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।
  3. देखिए परिशिष्ट ४ ।