पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/७८

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४७. पत्र: श्री अप्पासामी नायकरको[१]'

[जोहानिसबर्ग अप्रैल २८, १९११][२]


प्रिय श्री अप्पासामी नायकर,

मुझे मालूम हुआ है कि कलकी संयुक्त सभामें श्री सॉलोमनने जो कुछ बातें कही थीं, उनसे आप और कुछ अन्य मित्र बहुत अधिक नाराज हो गये हैं। श्री नायडूको और मुझे दरअसल बहुत अफसोस है। हम स्वीकार करते है कि श्री सॉलो- मनको ये बातें नहीं कहनी थीं; किन्तु हमें विश्वास है कि यह पत्र आपकी और उन लोगोंकी, जिन्हें ठेस पहुँची हो, भावनाओंको शान्त करनेके लिए पर्याप्त होगा। अतीतमें कुछ भी हुआ हो, प्रत्येक भारत-प्रेमीकी निस्सन्देह यह इच्छा होनी चाहिए कि वह उसे भूल जाये और हम अपनो अवस्थामें सुधार करने के लिए मिलकर काम करें।

आपका सच्चा,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५१७) की फोटो-नकलसे।

४८.भेंट: 'स्टार' के प्रतिनिधिको[३]'

[जोहानिसबर्ग अप्रैल २८, १९११]

कलके 'स्टार'में जो पत्र-व्यवहार प्रकाशित हुआ है, उसे देखकर पूरी तरह यह आशा बंधती है कि समझौता हो जायेगा, परन्तु उससे यह पता नहीं चलता कि समझौतेका ठीक-ठीक स्वरूप क्या होगा। कल शाम एक सभा हुई थी जो चार घंटे चली। उसमें श्री गांधोके देशवासियोंने उनको ऐसा अस्थायी समझौता करनेका अधिकार दे दिया है जिसके अन्तर्गत जनरल स्मट्स गवर्नर जनरलको परामर्श देंगे कि इस समय जेलों में बन्द सत्याग्रहियोंको राज्यको ओरसे क्षमा-दान दिया जाये। जिन लोगोंने

  1. इस पत्रके अन्तमें एक वक्तव्य है, जो अनुमानत: सॉलोमनका लिखा हुआ है । वह इस प्रकार है : “ मैंने उक्त पत्र पढ़ लिया है और उसमें व्यक्त की गई भावनाओंसे मैं अपनी पूर्ण सहमति प्रकट करता हूँ। मुझे सचमुच बहुत खेद है कि मेरी बातोंसे किसी भारतीयको तनिक भी दुःख पहुँचा ।
  2. दफ्तरी नकल (एस० एन० ५५१७) में, जो इस पत्रका आधार है, अप्रैल २७, १९११ की तारीख पड़ी हुई है । परन्तु पत्रमें जिस सभाका उल्लेख है, वह २७-४-१९११ को हुई थी। इसलिए स्पष्ट ही यह पत्र २८ अप्रैलको लिखा गया था ।
  3. इसे ६-५-१९११ के इंडियन ओपिनियनमें “ एक तीव्र संघर्षका अन्त" शीर्षकसे उद्धृत किया गया था।