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भेंट: स्टार के प्रतिनिधिक


अपना व्यापार स्वाहा कर दिया था वे फिरसे अपना कारोबार शुरू करनेकी कोशिश कर सकते हैं और वे महिलाएं और बच्चे, जो टॉल्स्टॉय फार्ममें रहते हैं और जिनका खर्च भारतीय समाज जुटाता है, क्रमशः अपने-अपने घरोंको वापस भेजे जा सकते हैं। अब, जबकि बात अपने अन्तिम दौरमें है, श्री गांधी सार्वजनिक जीवनसे छुट्टी लेनेकी तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने ऐसा प्रबन्ध कर भी दिया है कि उनकी वकालतका काम श्री रिच सँभाल लें। श्री रिच अभीतक लन्दनमें भारतीयोंके पक्षका प्रतिनिधित्व करते रहे हैं। फिलहाल श्री गांधीका विचार है कि वे सहायताको अपेक्षा रखनेवाले माता-पिताओंके बच्चोंकी देखभाल और शिक्षाके लिए कोई व्यवस्था कर दें और उसके पश्चात् अवकाश ग्रहण करके नेटालमें अपने फार्मपर जाकर रहें। जाहिर है कि वे वहाँ फुरसतके समय टॉलस्टॉयके दार्शनिक विचारोंपर अधिक गहराईसे मनन और अपने प्रिय देश भारतके मनीषियोंसे प्रेरणा ग्रहण करना चाहते हैं।

आज 'स्टार'का एक प्रतिनिधि श्री गांधीसे भेंट करने गया। वह जानना चाहता था कि श्री गांधोके विचारसे एशियाइयोंकी समस्या अब किस दौरमें है। लगता है, मौजूदा प्रवासी विधेयककी बात तो खत्म हो गई और अब सरकारके सामने दो ही मार्ग रह गये हैं। पहला तो यह कि वह ऐसा नया प्रवासी विधेयक पेश करे जिसमें से रंगभेद-सम्बन्धी व्यवस्थाएँ बिलकुल ही हटा दी जायें। उस विधेयकको पास करानेमें जनरल स्मट्सको फ्री स्टेटकी तरफसे होनेवाले विरोधसे निबटना पड़ेगा। दूसरा मार्ग है, स्थिति लगभग यथापूर्व बनाये रखी जाये और केवल ट्रान्सवालके प्रवास-सम्बन्धी कानूनोंको संशोधित कर दिया जाये। पहला मार्ग अपनानेसे ट्रान्सवालके भारतीयों द्वारा उठाई जानेवाली आपत्तियोंका निराकरण तो हो जाता है, परन्तु उसके साथ इससे समूचे संघमें शिक्षित प्रवासियोंके यात्रा कर सकनेके अधिकारी बात भी उठती है और अन्य प्रान्तोंमें भारतीयोंको मिली हुई वर्तमान सुविधाएँ सीमित हो जाती हैं। इस प्रकारका विधान बना देनेसे मामलेका, जैसा अन्तिम रूपसे होना चाहिए वैसा, निबटारा नहीं हो पायेगा। इस सिलसिलेमें श्री गांधी कहते हैं कि अभी देश एक सामान्य प्रवासी विधान बनानेके लिए तैयार नहीं है। क्योंकि विभिन्न प्रान्तोंमें अभी प्रवास-सम्बन्धी स्वतन्त्र नीतियोंका पालन होता आया है। विभिन्न प्रान्तोंकी संविधियोंमें इतना स्पष्ट अन्तर रहते हुए नामके लिए एक सामान्य विधान बना देना केवल अस्थायी व्यवस्था होगी; क्योंकि प्रान्तोंके एशियाई विधानोंमें कोई परिवर्तन न होने देने और एशियाइयोंकी गतिविधियोंको उनके तत्सम्बन्धी प्रान्तों तक ही सीमित रखनके प्रश्नपर सभी सहमत हैं।

[गांधीजी:] इस प्रकारकी स्थितिमें मुझे कहना पड़ता है कि विवेकपूर्ण राजनीतिज्ञता यही है कि परिस्थिति जैसी है उसे उसी रूपमें मान लिया जाय; और इसके बाद भी केन्द्रीय सरकार प्रान्तीय कानूनोंको लागूकर सकेगी। सामान्यतया यूरोपीयोंके प्रवासके अधिकारपर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। कारण केवल यही है कि कानून