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४९. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

[जोहानिसबर्ग]
अप्रैल २९, १९११

प्रिय श्री लेन,

आज सबेरे हमारे बीच जो बातचीत हुई, उसके सन्दर्भमें मुझे यह कहना है कि पिछले गुरुवारको हमीदिया हॉलमें एक सभा[१] की गई थी। भवन ठसाठस भरा हुआ था। अध्यक्ष श्री काछलिया थे। सभा चार घंटे तक चली। कुछ गरमागरम बहस होनेके बाद एक प्रस्ताव स्वीकार किया गया। इस प्रस्तावके द्वारा, जैसा कि आगे समझाया जा रहा है, वह अस्थायी समझौता स्वीकार कर लिया गया, जिसका रूप हमारे बीच इसी २२ तारीखको[२] आदान-प्रदान किये गये पत्रोंमें[३] प्रस्तुत किया गया था।

इस सभामें कई प्रश्न किये गये और अब भी किये जा रहे है। मेरे खयालसे यह उचित होगा कि मैं जनरल स्मट्सका ध्यान उनमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण प्रश्नोंकी ओर आकर्षित करूँ। सभामें निम्न प्रश्नोंके आधारपर पत्रोंकी जो व्याख्या की गई, सभाकी स्वीकृति उसी व्याख्यापर आधारित है।

(१) क्या सत्याग्रहियों द्वारा उठाई गई आपत्तिको हल करनेके लिए प्रस्तावित और नियोजित इस विधानसे इस समय ट्रान्सवाल या दक्षिण आफ्रिकाके अन्य भागोंमें जो अधिकार प्राप्त है, वे छिन जायेंगे?

उत्तर : नहीं छिनेंगे, चाहे प्रस्तावित विधान केवल ट्रान्सवालको प्रभावित करे या समस्त संघको।

(२) क्या वे सत्याग्रही, जो युद्धसे पहलेके अधिवासी हैं, किन्तु जो इस समय ट्रान्सवालके बाहर हैं, जैसे, श्री दाउद मुहम्मद या श्री रुस्तमजी, कानूनमें निर्धारित अवधिमें पंजीयनका आवेदनपत्र न दे सकनेपर भी पंजीयनके अधिकारी होंगे?

उत्तर: हाँ।

(३) जो सत्याग्रही पंजीकृत होते हुए भी निर्वासित कर दिये गये हैं, क्या उनका ट्रान्सवालमें प्रवेश निषिद्ध होगा?

उत्तर : नहीं।

  1. इंडियन ओपिनियन में ६-५-१९११के अंकमें छपा विवरण, जिसमें गांधीजीका भाषण नहीं दिया गया है, इस प्रकार है : “श्री गांधीने समूचे पत्र-व्यवहारपर प्रकाश डाला और उसमें आये हुए प्रस्तावोंको स्वीकार कर लेनेकी सलाह दी।"
  2. मूल मसविदेमें निम्नलिखित वाक्य था, बादमें निकाल दिया गया : “अब इसपर सुचारु रूपसे अमल केवल तभी सम्भव है जब जनरल स्मट्स उदार नीति अपनायें।"
  3. देखिए “ पत्र : ई० एफ० सी० लेनको”, पृष्ठ ३९-४१ और परिशिष्ट ४ भी ।