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प्रार्थनापत्र : उपनिवेश-मन्त्रीको


किये गये थे, जिन्हें छ: के[१] अतिरिक्त अन्य सभी उपस्थित लोगोंकी सहमति प्राप्त हुई। प्रस्ताव इस प्रकार हैं :

(क) दक्षिण आफ्रिकाकी संसदके अगले अधिवेशनमें १९०७ का कानून २ रद कर दिया जायेगा, लेकिन छोटाभाईके फैसलेके नामसे ज्ञात अदालती निर्णयके अनुसार नाबालिग बच्चोंके अधिकार सुरक्षित रखे जायेंगे।[२]
(ख) प्रवासके सम्बन्धमें एशियाइयोंको कानूनी दृष्टिसे यूरोपीयोंके बराबरका दर्जा फिरसे दे दिया जायेगा; किन्तु यह बराबरी वैधानिक होगी, कानूनो लागू करने के तरीकेमें भेद-भाव तो रहेगा ही।
(ग) भविष्यमें जो भी कानून बनाया जायेगा, उसमें ब्रिटिश भारतीयोंके मौजूदा अधिकारोंको बरकरार रखा जायेगा अर्थात् अगर कानून प्रान्तीय स्तरका हुआ तो ट्रान्सवालके एशियाइयोंके वर्तमान अधिकारोंको अछूता छोड़ दिया

जायेगा, और अगर वह सभी प्रान्तोंपर लागू होनेवाला हुआ तो उसमें प्रान्तों तथा ट्रान्सवालमें आज एशियाइयोंको जो अधिकार प्राप्त हैं, वे सभी अधिकार सुरक्षित रखे जायेंगे।

(घ) यदि कानून प्रान्तीय स्तरका हुआ तो किसी भी एक वर्षमें छः से अधिक उच्च शिक्षा प्राप्त एशियाइयोंको शैक्षणिक परीक्षा पास करने और प्रवासियोंके रूपमें ट्रान्सवालमें प्रवेश करने नहीं दिया जायेगा।
(ङ) समयपर अर्जी देकर जो सत्याग्रही पंजीयनके अधिकारी हो गये होते किन्तु जो सिर्फ सत्याग्रह आन्दोलनमें भाग लेने के कारण उससे वंचित रह गये, उन्हें अब पंजीयन कराने दिया जायेगा।
(च) जो शिक्षित सत्याग्रही पंजीयन कानूनके अन्तर्गत पंजीकृत नहीं किये जा सकते, उन्हें आगामी कानूनका खयाल करके ट्रान्सवालमें रहने दिया

जायेगा और वे चालू वर्षमें एशियाई प्रवासी माने जायेंगे।

(छ) समाज द्वारा फिलहाल सत्याग्रह आन्दोलन स्थगित रखनेका आश्वासन देनेपर जो लोग सत्याग्रही होनेके नाते सजा भोग रहे हैं, उनकी रिहाईके लिए परम श्रेष्ठ गवर्नर-जनरल महोदयसे सिफारिश की जायेगी।

इस मामले में संघ-सरकारने स्पष्ट ही जिस सद्भावना और उदारताका परिचय दिया है, उसके लिए मेरा संघ अपनी कृतज्ञता व्यक्त करता है, और साथ ही साम्राज्य सरकारका भी आभार मानता है कि उसने इस दुर्भाग्यपूर्ण समस्याका सुखद समाधान ढूंढ़नेके लिए मैत्रीपूर्ण तथा प्रभावकारी ढंगसे हस्तक्षेप किया।

किन्तु सत्याग्रह आन्दोलनको स्थगित करनेकी सहमतिका - जो अब समाजकी ओरसे मिल गई है -- यह अर्थ नहीं है कि ट्रान्सवालवासी ब्रिटिश भारतीयोंके सभी घोर कष्ट दूर हो गये हैं। वे आज भी अनेक कष्टोंसे पीड़ित हैं। अत: ब्रिटिश भारतीय संघ उनमें से कुछ अत्यन्त प्रमुख कष्टोंका उल्लेख करनेकी नम्रतापूर्वक अनुमति चाहता है।

  1. इंडियन ओपिनियनकी रिपोर्ट के अनुसार पाँचके अतिरिक्त ।
  2. देखिए पृष्ठ ३९ की पाद-टिप्पणी २ ।