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सम्पूर्ण गांधी वाङमय
'१८८५ का कानून ३

महामहिम सम्राट्की सरकार तथा भूतपूर्व दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके बीच युद्ध शुरू होने तक इसी कानूनको लेकर लिखा-पढ़ी चल रही थी। किन्तु संघकी विधान पुस्तकमें वह कानून आज भी मौजूद है। फर्क सिर्फ इतना हुआ है कि व्यापारिक उद्देश्योंसे ट्रान्सवालमें बस जानेवाले एशियाइयोंके पंजीयनके लिए आवश्यक तीन पौंडी शुल्क उठा दिया गया है। यह कानून ब्रिटिश भारतीयों तथा अन्य एशियाइयोंको :

(क) नागरिक अधिकारोंसे,

(ख) बाजारों और बस्तियोंके अलावा और कहीं भूसम्पत्तिके स्वामित्वसे, और

(ग) उनके निवासके लिए पृथक् किये गये बाजारों और बस्तियोंके अलावा किसी अन्य स्थानमें रहने के अधिकारसे वंचित करता है।

दक्षिण आफ्रिकामें एशियाइयोंके विरुद्ध जो दुर्भाग्यपूर्ण पूर्वग्रह व्याप्त है, उसे देखते हुए मेरा संघ फिलहाल नागरिक अधिकार, अर्थात् राजनीतिक मताधिकारकी किसी माँगको व्यावहारिक राजनीतिकी दृष्टिसे सम्भव नहीं मानता।[१]

किन्तु बोअरों और बस्तियोंके अतिरिक्त अन्य सभी स्थानों में भूस्वामित्वके अधिकारसे वंचित कर दिया जाना एक बड़ी जबर्दस्त निर्योग्यता है। इससे समाजकी प्रगतिके मार्गमें सहज ही बाधा उपस्थित होती है। इस निर्योग्यताके परिणामस्वरूप मकान आदि बनानेकी दिशामें कोई व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता ; सम्भव है यह बात अटपटी लगे किन्तु है सच कि इसी तथ्यको उसके विरुद्ध दलीलके रूपमें पेश किया जाता है; और इस प्रकार पूर्वग्रहको और भी प्रश्रय मिलता है। इस कानूनके अन्तर्गत यद्यपि एशियाइयोंका निवास बस्तियों में या बाजारों तक ही सीमित कर दिया गया है, किन्तु यदि कोई वहाँ जाकर न रहे तो इसके लिए किसी दण्डकी व्यवस्था नहीं की गई है। इसलिए न्यायालयोंने यह निर्णय दिया है कि एशियाइयोंको अनिवार्य रूपसे अलग नहीं बसाया जा सकता। किन्तु, चूंकि उनसे प्रतिस्पर्धा रखनेवाले यूरोपीय व्यापारी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूपसे मौजूद हैं, इसलिए अपेक्षाकृत गरीब वर्गके बहुत-से एशियाइयोंको भागकर ऐसी बस्तियोंकी शरण लेनी पड़ी है, जो इस कानून के अन्तर्गत पहले ही बसाई जा चुकी हैं। सरकार, फिलहाल प्रान्तीय सरकार, जिस विरोधी भावनाए प्रेरित हो रही है उसके नमूने के रूपमें यह बात ध्यान देने योग्य है कि ये बस्तियाँ [नगरोंसे] इतनी दूर बसाई गई है कि वहाँ सामान्य व्यापार कर सकना लगभग असम्भव हो गया है, और एशियाई फेरीवालोंको इससे बड़ी कठिनाई होती है; क्योंकि उन्हें हर रोज सामान खरीद लानेके लिए आम बाजारोंमें जाना पड़ता है। इसके अतिरिक्त यद्यपि इस कानूनके अन्तर्गत एशियाइयोंको इन बस्तियोंमें भूस्वामित्वका अधिकार तो प्राप्त है, किन्तु सरकार उन्हें बाड़ोंपर - जिनके रूपमें ये बस्तियाँ विभक्त है २१ सालसे अधिक समयके पट्टे प्राप्त करनेकी इजाजत नहीं देती। जोहानिसबर्गमें तो उन्हें माहवारी पट्टे ही दिये जा रहे है। यहाँ यह बता देना शायद उचित होगा कि पिछली

  1. इस सम्बन्धमें ट्रान्सवालके भारतीयोंका रवैया बराबर यही रहा था; देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २२३ और खण्ड ८, पृष्ठ ५३ तथा पृष्ठ ४६२।