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५१. भाषण : जोहानिसबर्गकी विदाई सभामें

[मई १, १९११][१]

श्री जोजेफ रायप्पनको विदाई देने के लिए फ्रीडडॉर्पके हमीदिया इस्लामिया हॉलमें स्थानीय भारतीय खिलाड़ियोंका एक बड़ा मजमा इकट्ठा हुआ था। श्री रायप्पन ट्रान्सवालके सत्याग्रह आन्दोलनमें अपनी भूमिका निभाने के बाद अब अपने घर डर्बन जा रहे हैं। अध्यक्षता श्री गांधीने की। .. .अध्यक्षने सभाकी कार्यवाही आरम्भ करते हुए, जैसा कि इस प्रसंगमें स्वाभाविक था, अपने प्रिय खेल सत्याग्रहको चर्चा की। उन्होने कहा, खेल तो बहुत है; किसी में हम जीतते हैं और किसीमें हारते हैं। लेकिन एक ऐसा खेल है जिसमें सदैव जीत ही होती है और वह है सत्याग्रहका खेल उन्होंने उस दीर्घकालीन परिश्रमसे भरे हुए खेलकी चर्चा करते हुए कहा कि यह खेल हम पिछले साढ़े चार वर्षों से खेल रहे हैं और अब विजयकी घड़ी आ पहुँची है। जो कौम सत्याग्रहका खेल इतनी खूबीके साथ खेल सकती है वह उतनी ही खूबीसे अन्य कोई भी खेल खेल सकती है।

[अंग्रेजीसे]
स्टार,४-५-१९११

५२. ट्रान्सवालकी टिप्पणियाँ

मंगलवार [ मई २, १९११]

बृहस्पतिवार, गत २६ तारीखको हमीदिया हॉलमें एक भारी सभा हुई। श्री काछलिया अध्यक्ष थे। लगभग २०० व्यक्तियोंको हॉलके बाहर खड़े रहना पड़ा। सभाकी कार्यवाही चार घंटे से अधिक समय तक चली। इसमें सर्वश्री कैलेनबैक और रिच भी उपस्थित थे। बहसमें चाहे तूफानकी तेजी न रही हो किन्तु यदा-कदा गर्मी अवश्य आ जाती थी। सभामें सारे समय सरकारके उद्देश्योंके प्रति तीव्र अविश्वासकी भावना व्याप्त रही। श्री गांधीने [सरकारके साथ हुए] सारे पत्र-व्यवहारको अच्छी तरह समझाया और उसमें सुझाये गये प्रस्तावोंको माननकी सलाह दी। प्रस्तावके समर्थनमें श्री कुवाडिया तथा सर्वश्री रायप्पन, सोलोमन अर्नेस्ट, थम्बी नायडू, इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, सोराबजी, सोढा आदि सज्जन बोले। इसके बाद पॉचेफ्स्ट्रुमके श्री अब्दुल रहमानने सुझाव पेश किया कि अनाक्रामक प्रतिरोध बन्द करनेके प्रस्तावको

  1. मई १३, १९११ के इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागकी एक रिपोर्टसे ज्ञात होता है कि यह समारोह मई १, १९११को वन्देमातरम् लीग' के तत्वावधानमें हुआ था । देखिए अगला शीर्षक भी।