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पत्र: ई०एफ० सी०लेनको


तरहके लोगोंको प्रार्थनापत्र देनेकी अनुमति दी जा सकती है। मैं उनकी बात नहीं करता जो दक्षिण आफ्रिकामें है, क्योंकि मुझे मालूम हुआ है कि जनरल स्मट्सको उनके सम्बन्ध में कोई दिक्कत पेश होने का अंदेशा नहीं है।

कोई चीनी सत्याग्रही दक्षिण आफ्रिकाके बाहर नहीं है।

जिन भारतीयोंके भारतमें होनेकी सम्भावना है, वे इनमें से किसी-न-किसी श्रेणीमें आ जायेंगे:

(क) वे लोग जो १९०७ के पंजीयन अधिनियम २ या १९०८ के अधिनियम ३६के अन्तर्गत १ जनवरी १९०८ के बाद निर्वासित किये गये थे और जिन्होंने अभी तक दोनोंमें से किसी भी अधिनियमके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र नहीं दिया है।[१]

(ख) वे लोग जो यद्यपि निर्वासित नहीं किये गये है, किन्तु १ मार्च, १९०७ के कुछ समय बाद संघर्षके कारण दक्षिण आफ्रिकासे चले गये थे।[२]

वर्ग (क) के अन्तर्गत आनेवाले प्रार्थीपर अपने निर्वासनका प्रमाण देनेकी जिम्मेदारी तथा वर्ग (ख) के अन्तर्गत आनेवाले प्रार्थीपर अपने यहाँसे चले जानेका प्रमाण देनेकी जिम्मेदारी होगी।

उक्त पद्धति अपना लेनेपर जनरल स्मट्सके इस भयका निवारण हो जाता है कि कहीं उन प्रार्थियोंके आनेका द्वार न खुल जाये जो दक्षिण आफ्रिकासे वर्षों पूर्व भारत चले गये थे और अब जिनके झूठा दावा पेश करनेकी सम्भावना है।

मैं समझता हूँ कि (क) या (ख) दोनोंमें से किसीके भी अन्तर्गत ३० से अधिक भारतीयोंके आनेकी सम्भावना नहीं है; और दक्षिण आफ्रिकासे सम्भवत: १५० से अधिक लोग प्रार्थनापत्र नहीं देंगे।

हमारे बीच हुए पत्र-व्यवहारसे यह निष्कर्ष निकलता है कि जिन लोगोंने पंजीयक को १९०७ या १९०८ के अधिनियमके अन्तर्गत पंजीयनके लिए प्रार्थनापत्र दिये हैं और जिनके प्रार्थनापत्र अस्वीकृत कर दिये गये हैं, वे अब फिर प्रार्थनापत्र नहीं दे सकते। किन्तु दक्षिण आफ्रिकामें कुछ लोग[३] ऐसे हैं जिन्होंने १९०८ का अधिनियम पारित होनेसे पहले स्वेच्छया प्रमाणपत्र लेनेके लिए प्रार्थनापत्र दिये थे; किन्तु उन्होंने पंजीयक द्वारा प्रार्थना अस्वीकृत कर दिये जानेपर १९०८ के अधिनियमके बाद प्रार्थनापत्र नहीं दिये। ये लोग अब अधिनियमके अन्तर्गत प्रार्थनापत्र देंगे, जिससे आवश्यक होनेपर वे १९०८ के अधिनियमसे प्राप्त अपीलके अधिकारका लाभ उठा सकें।

रहे दक्षिण आफ्रिकाके चीनी; सो उनकी संख्या ३० से अधिक नहीं है। उनमें केवल दोको छोड़कर सब ट्रान्सवालमें है और ये दो डेलागोआ-बे शहरमें हैं।

  1. अप्रैल १४, १९०९को पहली वार १६ भारतीयोंकी एक टोलीको और ५ जून, १९०९ तक लगभग २९ भारतीयोंको निर्वासित किया जा चुका था ।
  2. चूँकि एच० ओ० अली न तो सत्याग्रहमें शामिल होना चाहते थे और न १९०७ के अधिनियम २ के अन्तर्गत अपना पंजीयन ही करवाना चाहते थे, इसलिए वे १९०७ के अगस्तमें ट्रान्सवाल छोड़कर चले गये थे। कई अन्य लोग भी इन्हीं कारणोंसे इन्हीं दिनों टान्सवाल छोड़कर चले गये थे।
  3. मई १९, १९११को दिये गये अपने उत्तरमें गृह-मन्त्रीके कार्यवाहक सचिवने (परिशिष्ट ५) यह संख्या १८० मानी है । इसमें भारतीय और चीनी दोनों आ जाते है ।