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५५. पत्र: एच० एस० एल० पोलकको

मई ८,१९११


प्रिय पोलक,

तुम्हारी प्लेट और श्री काछलियाका अधिकारपत्र[१] ११६ पौंड ९ शि० का ड्राफ्ट तथा हरिलालके पत्रके अनुवादकी प्रतिलिपि भेज रहा हूँ। मैं समझता हूँ कि वेस्ट तुम्हें पीटरका पत्र भेज देंगे। यह तो तुमने देख ही लिया होगा कि वे तुम्हारे तारका आशय नहीं समझे। कॉडिज़का[२] पता यह है : जॉन एच० कॉर्डिज़ जूनियर, ६८ जी० आर० ब्लीखेन, हैम्बर्ग। मैं समझता हूँ कि तुम्हारा लन्दनका मार्ग-व्यय ४५ पौंडसे अधिक आयेगा; जिसमें पार्क स्टेशनपर दिया गया सामानका भाड़ा भी शामिल है। इसमें यात्राके दौरान होनेवाला व्यय और बख्शीस वगैरह शामिल नहीं है। इसलिए मैं वाटरलू तक तुम्हारा मार्ग-व्यय ५५ पौंड लगाता हूँ। व्ययका मेरा तखमीना इस तरह है :

लन्दन तक मार्ग-व्यय
५५ पौंड
 
२० मई से १५ अक्तूबर तक ५० पौंड प्रति मासकी दरपर
२५० पौंड
 
तुम्हारा, मिली, सेली और लड़कोंका बम्बई तक का मार्ग-व्यय
१०० पौंड
 
भारतमें नवम्बरसे मार्च तक रहनेका खर्च २५ पौंड प्रति मासके हिसाबसे
१२५ पौंड
 
तार आदिका खर्च
१०० पौंड
 
भारतसे दक्षिण आफ्रिका तक का मार्ग-व्यय
६० पौंड
 

६९० पौंड


इसलिए मेरा अन्दाज है कि खर्च ७०० पौंड तक आयेगा। यदि तुम जल्द लौट आओ, तो कुछ बचत हो सकती है। ऊपरकी रकममें से मोटे तौरपर ४४ पौंड यहाँ तुम्हारे मार्ग-व्ययपर खर्च हो चुके है और २०० पौंड अब शिष्टमण्डलके निमित्त भेजे गये हैं। मैंने वहाँके खर्चका तखमीना जानबूझकर ५० पौंड लगाया है, क्योंकि [इंग्लैंडमें] तुम्हारे रुकनेके दौरान समितिकी गतिविधियाँ बढ़ जायेंगी। इसीलिए मैंने प्रति माह १८ पौंडके बजाय २५ पौंड रखे हैं; और सम्भवतः इससे मॉड कुछ निश्चिन्त हो सकेगी;

  1. तात्पर्य पोलकके नाम काछलियाके उस पत्रसे है जिसके द्वारा उन्होंने ब्रिटिश भारतीय संघकी २७ अप्रैलकी बैठक में हुए निर्णयके अनुसार गांधीजी और काछलियाके स्थानपर पोलकको इंग्लेंडमें आफ्रिकाके भारतीयोंका प्रतिनिधित्व करनेका अधिकार दिया था ।
  2. एक जर्मन थियोसफिस्ट, जिन्होंने फीनिक्स आश्रमका सदस्य बननेके लिए एक अच्छी खासी नौकरी छोड़ दी थी। वे फीनिक्समें स्कूल चलाते थे और बस्तीमें परिचर्या के कामकी भी देखभाल करते थे। इस समय वे श्रीमती एनी बेसेन्ट, जिनके वे बड़े प्रशंसक थे, की देखरेखमें अडयार (मद्रास) की थियोंसॉफिकल सोसाइटीमें एक वर्षका पाठयक्रम पूरा कर रहे थे। बादमें वे भारतमें गांधीजीके पास सेवाग्राम जाकर रहने लगे थे, जहाँ १९६० में उनकी मृत्यु हुई ।