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पत्र: डॉ० प्राणजीवन मेहताको


'इंडियन ओपिनियन' की १९०९ की जिल्दके पृष्ठ १४८ पर खोटाका[१] मामला सिल जायेगा। हम चाहते यह है कि स्वर्ण-कानूनमें संशोधन हो जाये और तबतक उसके खण्ड १३० पर अमल करना स्थगित रखा जाये।

हृदयसे तुम्हारा,
[मो० क० गांधी]

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५५३१) की फोटो-नकल से।

५६. पत्र : डॉ० प्राणजीवन मेहताको

टॉल्स्टॉय फार्म
वैशाख सुदी १० [मई, ८ १९११][२]


भाई श्री प्राणजीवन,

आपके दो पत्र मुझे इस सप्ताहमें मिले। थियॉसफीके विषयमें आपके जो विचार है, वैसे मेरे १८९९ से रहे हैं। उस वर्ष मुझसे सोसाइटीमें शामिल होनेका बहुत आग्रह किया गया था, किन्तु मैने साफ इनकार कर दिया था और कहा था कि सोसाइटीका भाईचारेवाला सिद्धान्त मुझे पसन्द है, किन्तु मैं सूक्ष्म शक्तियोंकी खोज करने तथा उन्हें प्राप्त करनेके प्रयत्नके विरुद्ध हूँ। मुझे श्रीमती बेसेंट[३] ढोंगी नहीं जान पड़तीं। वे तो भोली-भाली है और लेडबीटरके छलावे में आ गई हैं। लेडबीटरने ‘मृत्यु और उसके उपरान्त' नामकी एक पुस्तक लिखी है। एक अंग्रेज मित्रने मुझे उसको पढ़नेका सुझाव दिया था; किन्तु मैंने उसको पढ़नसे साफ इनकार कर दिया, क्योंकि मुझे उनके कुछ लेख पढ़नेके बाद उनके सम्बन्धमें सन्देह हो गया था। उनके ढोंगका पता तो मुझे पीछे चला। इसके बावजूद थियॉसफीमें से जो सार मुझे लेने योग्य लगा वह मैंने लिया है। ब्लेवेटस्कीकी[४]

  1. 'मेसर्स खोटा ऐंड कम्पनी' १८९८ से नाइजेल नामक एक खनन क्षेत्रमें एक गोरे द्वारा किरायेपर उठाई गई गुमटीमें व्यापार करती आ रही थी । १९०९ में राजस्व-आदाताने स्वर्ण-कानूनके खण्ड ९२ और १३० के आधारपर उनके व्यापार परवानेका अभिनवीकरण करनेसे इनकार कर दिया। उन खण्डोंके अनुसार एशियाई लोग घोषित क्षेत्रों में निवास या व्यापार नहीं कर सकते थे । अपील करनेपर, ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयमें सरकारी व्याख्याको नहीं माना और राजस्व अधिकारीको परवाने जारी करनेका आदेश दे दिया।
  2. इस खण्डमें आये हुए अनेक गुजराती पत्रोंपर भारतीय पंचांगके अनुसार मास और तिथि तो पड़ी है तथापि संवत्सर नहीं दिया गया है । इस पत्रमें उल्लिखित ३०० पौडकी भेंट गांधीजीको मई ४, १९११ को प्राप्त हुई थी और उस वर्ष वैशाख सुदी १०, मई ८ को पड़ी थी।
  3. देखिए खण्ड सात, पृष्ठ २३४, पाद-टिप्पणी १ ।
  4. श्रीमती ब्लेवेटस्की (१८३१-९१); रूसी अभिजात कुलमें जन्म; १८७५ में थिऑसॉफिकल सोसायटीको स्थापना की; १८७९ में अडयारमें इसका केन्द्रीय कार्यालय खोला गया। सोसायटीने सार्वभौम भाईचारेका प्रसार और सभी धर्मोंका तुलनात्मक अध्ययन प्रारम्भ किया। श्रीमती लेवेटस्कीके विषय में विभिन्न मतामत थे और उनके आध्यात्मिक चमत्कारोंको अनेक लोग सन्देहकी दृष्टिसे देखते थे।