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सम्पूर्ण गाँधी वाङमय


'की' नामकी पुस्तकका मेरे मनपर बहुत अच्छा प्रभाव हुआ। थियॉसफीके कारण अनेक हिन्दू अपने धर्मकी खोज करनेके लिए प्रेरित हुए हैं। जो प्रयोजन ईसाई धर्मने पूरा किया है, वही थियॉसफीने भी पूरा किया है। इसके सिवा हम जिन' मूल सिद्धान्तोंको मानते हैं, उन्हें थियॉसफी भी मानती है, इसलिए थियॉसफीके अनुयायियोंमें भले आदमी आसानीसे मिल जाते हैं। वैष्णवों आदिके सम्प्रदायोंमें ऊपरसे नीचे तक धूर्तीकी कमी नहीं है, फिर भी उनमें नरसी मेहता[१], भोजा भगत[२] आदि हीरे भी मिलते हैं। रिच भी थियॉसफिस्ट थे। उन्होंने मुझसे सोसाइटीका सदस्य होनेका आग्रह किया। मैं तो उसका सदस्य नहीं हुआ, साथ ही उनको उसके ढोंगसे मुक्त होने में मैंने सहायता दी। पोलक थियॉसफिस्ट है, किन्तु थियॉसफिस्टोंके कर्मकाण्डसे तथा उनकी पुस्तकोंसे वे बहुत दूर रहते हैं । ऐसा ही कैलेनबैकके विषयमें कहा जा सकता है। मैं जिस समय भारतमें था, उस समय गोकुलदासको मैंने बनारसके कॉलेजमें[३] भेजा था। उस समय भी मैं निराश हुआ था। उसके बाद भी जबतक मुझमें आज जो समझ है वह नहीं थी, यानी आधुनिक शिक्षा पद्धतिके विषयमें जो वीतरागता है, वह नहीं थी तबतक "मामाके बिलकुल ही न होनेसे काना मामा अच्छा", ऐसा सोचकर बनारस कॉलेज-जैसे विद्यालयोंकी खोजमें मैं रहता था और बालकोंको ऐसी जगह भेजनेकी इच्छा भी रखता था। अब वैसा कुछ नहीं है। कॉडिज़ फीनिक्समें हैं। वे पक्के थियाँसफिस्ट हैं। उन्हें अभी थियॉसफीके व्यसनसे मैं मुक्त नहीं कर सका हूँ। उनका मन निर्मल प्रतीत होता है। इस समय वे आग्रहपूर्वक अडयार गये हुए हैं। वे ईमानदार है, इसलिए यदि चक्कर न आये तो वहाँका ढोंग वे समझ लेंगे और उसे छोड़ देंगे। अडयारमें यह ढोंग किस हद तक है या ऐसा कहिए कि श्रीमती बेसेंटकी सज्जनताके कारण वह किस हद तक ढंका रहता है, यह सब जानने लायक है। श्रीमती बेसेंट मास्टर (गुरु) के रूपमें प्रसिद्ध होना चाहती हैं, यह बात समझमें आती है। जो व्यक्ति [गूढ़] शक्तियोंकी खोजमें भटकता है उसे इस प्रकारका नशा चढ़े बिना नहीं रहता। मैं समझता हूँ कि यही कारण है कि हमारे सभी शास्त्रोंमें शक्तियों और सिद्धियोंको वयं कहा गया है और इसीलिए हठयोगकी तुलनामें भक्तियोगको ज्यादा अच्छा माना गया है।

हरिलालका साथका पत्र[४] पढ़ना । उसने जोजेफ रायप्पनको सब समाचार दिये है और सूचित किया है कि आवश्यकता हो तो वे समाचार मुझे भी पहुँचा दिये जायें। उनसे मैं उसकी वर्तमान गतिविधिक विषयमें कुछ ज्यादा जान सका हूँ। वह इस समय डेलागोआ-बेमें है और वहाँसे उसने मेरे तारका जवाब दिया है। तुम्हारे पैसेसे तथा [तुम्हारी शर्तोसे] बँधकर विलायत जाना उसे रुचा नहीं। जोज़ेफ कहता है कि उसका विचार पंजाबमें जाकर कहीं किसी एकान्त स्थानमें पढ़नेका है। उसका पत्र नासमझीसे भरा हुआ है। उसका पंजाब जानेका विचार भी, जबतक विस्तृत समाचार नहीं मिलते, ऐसा ही मालूम होता है। किन्तु दो-चार दिनमें ज्यादा खबर मिलेगी। वह

  1. गुजराती सन्त कवि ।
  2. मध्ययुगीन गुजराती भक्त कवि ।
  3. एनी बेसेंट द्वारा स्थापित सेन्ट्रल हिन्दू कालेज, बनारस ।
  4. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।