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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

के लिए खाना बनाने तथा उनकी देख-भाल करने, डॉक्टरी सहायता देने तथा देहाती महिलाओंको स्वास्थ्यके सामान्य नियम बतानेके उद्देश्यसे उनके बीच घूमने-फिरनेमें व्यतीत होता है। मैं यह भी कह दूँ कि श्रीमती गांधीने भाषण देने या अखबारोंको पत्र भेजनेकी कला नहीं सीखी है।

पत्रके शेष भागके बारेमें जितना कम कहा जाये, उतना ही अच्छा है। यह गलतबयानियोंसे, जिन्हें बिल्कुल साफ देखा जा सकता है, इस तरह भरा पड़ा है कि इसका उत्तर देते समय अपने ऊपर पर्याप्त नियन्त्रण रख सकना कठिन है। मैं इतना ही कह सकता हूँ कि मैंने बागान-मालिकों तथा काश्तकारोंके बीच सद्भाव लानेके लिए जो दायित्व उठाया है, मैं उसे निभानेके लिए अपने तई पूरा प्रयत्न कर रहा हूँ। और यदि मैं असफल भी होऊँगा तो इसका कारण यह नहीं होगा कि मेरे प्रयत्नोंमें कोई कमी रह गई। उसका कारण तो, यदि पूर्णत: नहीं तो अधिकांशतः, वह शरारत-भरा प्रचार होगा जो चम्पारनमें श्री इर्विन खुलेआम और कुछ अन्य लोग छिपे तौरपर कर रहे हैं और जिसका उद्देश्य जाँच समिति द्वारा प्रकाशित रिपोर्टको प्रभावहीन बनाना है। श्री इर्विनका कहना है कि उक्त समिति मेरे निवेदनपर नियुक्त की गई, किन्तु, जैसा कि आपकी फाइलोंसे प्रकट होगा, इसकी नियुक्ति श्री इर्विन और उनके आंग्ल-भारतीय संघके मित्रों द्वारा चलाये गये आन्दोलनके परिणामस्वरूप हुई थी। यदि वे समझदार हैं तो वे उन वचनोंपर डटे रहेंगे जो उन्होंने काफी विचार-विमर्श करने और सोचनेविचारनेके बाद राँचीमें दिये थे।

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे
स्टेट्समैन, १९-१-१९१८

७६. पत्र : एस॰ के॰ रुद्रको

मोतीहारी
जनवरी १६, १९१८

प्रिय श्री रुद्र,[१]

यह पत्र मैं भाई देसाईसे लिखवा रहा हूँ। मेरी बाईं तरफ बड़ा दर्द हो रहा है। इसलिए बहुत लिखनेको जी नहीं करता। आपसे मुझे मिल सके, तो हमारी प्रान्तीय भाषाओं के लिए, उनके बारेमें जल्दीमें लिखा हुआ पत्र नहीं, उत्साहपूर्ण और सुन्दर समर्थन मुझे चाहिए, जिसका उपयोग मैं लोगोंकी कर्त्तव्य-बुद्धि जाग्रत करनेमें कर सकूँ। आप पढ़ाई प्रादेशिक भाषामें और परीक्षाके उत्तर अंग्रेजीमें लिखनेकी व्यवस्था क्यों रखना चाहते हैं? हरएक विद्यार्थीको अंग्रेजी क्यों जाननी ही चाहिए? क्या इतना

 
  1. सुशीलकुमार रूद्र, सेंट स्टीफन्स कॉलेज, दिल्लीके प्रधानाचार्य।