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पत्र : ग॰ वा॰ मावलंकरको

सरकार अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा के लिए उत्सुक है, वैसे ही हम भी अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षाके लिए उत्सुक है। सरकार अपनी प्रतिष्ठाको प्राय: अपनी सत्ताके जोरसे कायम रखती है; किन्तु हमें इसको केवल अपने न्यायपूर्ण कार्यसे कायम रखना चाहिए। जनताको इस तरहका विस्तृत अनुभव और निश्चित पथ-प्रदर्शन मिले, तो उससे उसे स्वराज्यकी बड़ी तालीम मिलेगी। मैंने इस हदतक यह आलोचना इसीलिए की है।

दूसरी बात जो मैं कहना चाहता हूँ यह है कि ऐसे समय किये हए कामका मूल्य आसानीसे आँका जा सकता है। समितिको दूसरे सारे कामोंको छोड़कर भी तुरन्त अपनी बैठक करनी चाहिए। सार यह है कि समितिका कार्य स्थगित नहीं किया जा सकता। समितिमें ऐसे होशियार और जिम्मेदार लोग होने चाहिए, जो जब जरूरत पड़े, उपस्थित हो सकें। अगर हमारा मामला सच्चा हो, तो उससे हजारों गरीब लोगोंकी रक्षा हो सकती है। जैसे हम अपने निजी स्वार्थके लिए सब कुछ त्याग देना न्यायसंगत मानते हैं, वैसा ही आचरण हम इस सार्वजनिक स्वार्थकी खातिर करनेके लिए बाध्य हैं। यह हरएक सार्वजनिक कार्यकर्त्ताकी गुप्त प्रतिज्ञा होनी चाहिए। मेरा खयाल है कि हमारा जवाब बहुत देरसे गया माना जायेगा। अक्सर सरकार अपेक्षाकृत अधिक सावधान होनेके कारण ही सार्वजनिक आन्दोलनको दबा पाती है। न्याय 'सोनेवालेको नहीं, जागनेवालेको ही सहायता दे पाता है।' यह वाक्य अदालतमें दुहरानेके लिए ही नहीं है; यह हमारे हर व्यवहारमें लागू होता है।

आप सब बहुत अच्छा काम कर रहे हैं और आप अडिग रहे हैं; इसीलिए मैंने आपकी उक्त आलोचना की है। अगर मेरा यह कहना होता कि आप आलसी हैं, तो यह बात मैंने अपनी चुप्पीसे ही बता दी होती। ऐसा कहनेके लिए कालक्षेप करना मेरा तरीका ही नहीं है। आप अधिकाधिक सावधान बनें और तीस वर्ष पुरानी इस सभाका सम्मान बढ़े, इसी उद्देश्यसे उक्त प्रेमोद्गार प्रकट किये हैं। उन्हें प्रहार समझनेकी भूल न करें और खिन्न न हों।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४