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१०४. पत्र : उत्तरी क्षेत्रके कमिश्नरको

साबरमती
फरवरी ७, १९१८

एफ॰ जी॰ प्रेट,
अहमदाबाद
[महोदय,]

कपडवंजके मामलतदारके हस्ताक्षरोंसे जारी किये गये कुछ नोटिस[१] मैंने पढ़े हैं। उनमें से एकमें लिखा है कि यदि ११ जनवरीसे पहले लगान नहीं चुका दिया गया, तो जमीनें जब्त कर ली जायेंगी। जिन आसामियोंपर यह नोटिस जारी किया गया है, उनमें से कुछ मुझसे मिल चुके हैं। मुझे तो वे इज्जतदार आदमी मालूम होते हैं। उनकी आपत्ति सिद्धान्तपर आधारित है। उनमें से कुछकी जमीनें खास पट्टोंपर हैं। मुझे पूरा यकीन है कि सरकारका अन्तिम निर्णय चाहे जो हो, वह ऐसे कदम नहीं उठाना चाहेगी जिनका नतीजा अन्तमें कटुता फैलानेके अलावा और कुछ नहीं निकल सकता। मैंने इसी मामलतदार द्वारा जारी किया गया एक और नोटिस भी देखा है। उसमें बहुत ही प्रतिष्ठित जमींदारोंके लिए “डांडाई" शब्दका प्रयोग किया गया है। इस शब्दका अर्थ "दुरात्मा" के सिवा कुछ नहीं होता। मैं यह कहे बिना नहीं रह सकता कि नोटिसकी भाषा अशोभनीय है और अनावश्यक रूपसे दुःखद है।[२]

[आपका, आदि,]

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १

 
  1. फरवरी ६ को गांधीजीके साबरमती आश्रम लौटनेपर उन्हें मामलतदारों और कलक्टर द्वारा जारी कि गये नोटिस और परिपत्रोंकी प्रतिलिपियाँ दिखाई गई; देखिए "पत्र: उत्तरी क्षेत्रके कमिश्नरको", फरवरी १०, १९१८ के बाद।
  2. कमिश्नरने १० फरवरीको इसका निम्नलिखित उत्तर दिया: "लगान अदा न करनेका दण्ड राजस्व विधान (लेंड रेविन्यू कोड) में साफ शब्दोंमें लिखा हुआ है। कानूनके खिलाफ न तो कुछ किया गया है और न कुछ किया ही जायेगा। इसलिए मेरी समझमें नहीं आता कि जो कार्रवाई कानूनकी रू से की गई है, उसे आप खीझ पैदा करनेवाली और कटुता बढ़ानेवाली क्यों बताते हैं।"