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१०५. भाषण : अहमदाबादके मिल-मजदूरोंकी सभामें[१]

फरवरी ८, १९१८

आप लोग अपनी तकलीफोंके बारेमें मिल-मालिकोंको एक पत्र लिखिये। दोनों पक्षोंके बीच कटुता पैदा नहीं होनी चाहिए। हम एकदम ५० या ६० फीसदी वृद्धिकी मांँग नहीं कर सकते। हम उनसे दृढ़तापूर्वक निवेदन करेंगे; फिर भी यदि वे न मानें तो दोनों पक्षोंसे पाँच-पाँच व्यक्ति लेकर एक समिति बनायेंगे और हम उसका निर्णय स्वीकार करेंगे। इस पंच-समितिका निर्णय दोनों पक्षवालोंको अवश्य स्वीकार करना होगा। वे हमारी मुनासिब माँगोंपर विचार जरूर करेंगे। वे भी हमारी तरह ही भारतीय हैं इसलिए निराश होनेका कोई कारण नहीं है। आप लोग न्यायके मार्गका अनुसरण करें और कटुताके बिना काम निकालें। इससे आपका पक्ष और अधिक मजबूत बनेगा। अनसूयाबेन आप लोगोंके लिए ही पैदा हुई है। (जोरसे तालियाँ)। वेतनमें वृद्धि माँगनेके परिणामस्वरूप जितना धन प्राप्त हो उससे स्वच्छ रहनेकी आदत डालें। व्यसनोंसे दूर रहें और अपने बाल-बच्चोंको शिक्षित करें। अपने हकको निर्भयतापूर्वक अपने मालिकोंके समक्ष रखें। आप लोगोंके इस काममें मैं यथासम्भव सहायता करनेकी इच्छा रखता हूँ।

[गुजरातीसे]
गुजराती, १७-२-१९१८

१०६. श्रीमती जिनराजदासको लिखे पत्रका अंश[२]

[साबरमती
फरवरी १०, १९१८ से पूर्व]

कस्तूरबाईको अंग्रेजीमें हस्ताक्षर करना न आनेके बारेमें लिखे गये वाक्यकी शब्दावली ठीक नहीं। उससे पूरे विचारको अभिव्यक्ति नहीं मिलती। कस्तूरबाई 'शिक्षित'

 
  1. खेड़ाके किसानोंको समस्याके सिलसिले में फरवरी २ को गांधीजी बम्बई गये थे। वहाँ अहमदाबादके मिल-मालिक सेठ अम्बालाल साराभाईसे उनकी मुलाकात हुई। साराभाईने अपने मिलके मजदूरोंमें बोनसके सम्बन्धमें फैले हुए असन्तोषकी चर्चा की और उनसे इस मामलेको हाथमें लेकर बीच-बचाव करने की प्रार्थना की। गांधीजी अहमदाबाद गये; और वहाँ पहुँचकर मामलेकी पूरी जानकारी खुद हासिल की। प्लेगका बोनस एकाएक बन्द कर देनेके निर्णयसे मजदूरोंको बड़ी कठिनाई में पड़ जानेका डर था। उन्होंने इस बोनसकी जगह वेतनका ५० फीसदी मँहगाईके भत्तेके रूपमें माँगा। कदाचित् मजदूरोंकी यह पहली सभा थी जिसमें गांधीजीने भाषण दिया था।
  2. गांधीजीके २ फरवरीके पत्रके उत्तरमें श्रीमती जिनराजदासने उन्हें मीठा उलाहना भरा जवाब दिया था; यह उसीका प्रत्युत्तर है।