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सम्पूर्ण गांधी वाङ‍्मय

तुम्हारी परीक्षा करनेमें असमर्थ हूँ। तुम्हारी अपने-आप की हुई परीक्षाको मैं स्वीकार करता हूँ और तुम्हारे प्रति पिताका पद ग्रहण करता हूँ। मालूम पड़ता है, मेरा लोभ तुमने लगभग पूरा कर दिया। मेरी मान्यता है कि सच्चा पिता अपने से अधिक चरित्रवान् पुत्रको जन्म देता है। सच्चा पुत्र वह है, जो पिताकी कृतिमें वृद्धि करे। पिता सत्यवादी, दृढ़ निश्चयी और दयावान् हो, तो पुत्र अपने भीतर इन गुणोंको और अधिक पैदा करे। मालूम होता है, तुमने ऐसा ही किया है। मुझे यह तो नहीं जान पड़ता कि ऐसा तुमने मेरे प्रयत्नसे किया है। इसलिए तुम मुझे जो पद दे रहे हो, उसे मैं तुम्हारे प्रेमकी भेंटके रूपमें स्वीकार करता हूँ। मैं इस पदका पात्र बननेका प्रयत्न करूँगा और जब मैं हिरण्यकशिपु साबित होऊँ, तब तुम भक्त प्रह्लादकी तरह मेरा सादर निरादर करना।

तुम्हारी यह बात सही है कि तुम बाहर रहकर आश्रमके नियमोंका बहुत अच्छी तरह पालन करते रहे हो। तुम्हारे आनेके विषयमें मुझे कोई शंका ही नहीं थी। तुम्हारे लिखे हुए सन्देश मुझे मामाने पढ़कर सुना दिये थे। ईश्वर तुम्हें दीर्घायु करे और मैं चाहता हूँ कि तुम्हारा उपयोग भारतकी उन्नतिके लिए हो।

तुम्हारी खुराकमें हेरफेर करने लायक अभी तो कोई बात नजर नहीं आती। फिलहाल दूध नहीं छोड़ना; बल्कि जरूरत मालूम हो, तो उसकी मात्रा बढ़ा देना।

रेलवेके मामले में सत्याग्रहकी आवश्यकता नहीं है। लेकिन इस बारेमें ज्ञानवान् प्रचारकोंकी जरूरत है। सम्भव है, खेड़ा जिलेके मामले में लड़ाई लड़नी पड़े। मैं तो अभी रमता राम हूँ। एक-दो दिनमें दिल्ली जाना होगा।

और बातें जब तुम आओगे, तब। सब तुमसे मिलनेको उत्सुक है।[१]

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

 
  1. महादेव भाई लिखते हैं कि जब गांधीजी पत्र लिखा चुके तो बोले : "बहुत जबरदस्त आदमी है। मेरा खयाल रहा है कि मेरा महाराष्ट्रीयों और मद्रासियोंके साथ भारी ऋणानुबन्ध है। मद्रासी तो अब रहे नहीं, किन्तु किसी भी महाराष्ट्रीयने मुझे निराश नहीं किया है। उनमें बिनोबा सबसे आगे बढ़ गया है।"