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पत्र : ए॰ एच॰ वेस्टको


गुजरातमें भी काम हो रहा है। गोधरा और भड़ौंचके भाषणोंमें[१] मैंने जो कार्यक्रम बताया था उसके अनुसार ही यह काम चल रहा है। अभी तो सत्याग्रहका एक प्रसंग नजदीक दिखाई देता है। उससे निपट लेनेका प्रयत्न मैं कर रहा हूँ। गुजरातका काम विविध प्रकारका है। साथ ही अलीभाइयोंके छुटकारेके लिए आन्दोलन शुरू करनेका भी विचार कर रहा हूँ। इसके सिवा गोसेवा, सफाई, शिक्षाकी राष्ट्रीय पद्धति, हाथकी बुनाई और हिन्दुस्तानकी राष्ट्रभाषाके रूपमें हिन्दीका प्रचार आदिका कार्यक्रम चला रहा हूँ। आश्रम और वहाँकी राष्ट्रीय पाठशाला तो चल ही रही है।

सौभाग्यसे इन सब कामोंमें मुझे अच्छे साथी मिल गये हैं; और इन्हींके सिलसिले में काफी घूमना पड़ता है।

आश्रम साबरमती नदीके किनारे सुन्दर स्थानपर स्थित है। हम रोज नदीमें नहाते हैं। सब लड़कोंको तैरना आ गया है। पाठशालाको सुयोग्य आचार्य[२] मिल गये हैं। वे गुजरात कॉलेजमें प्रोफेसर थें। आश्रमकी व्यवस्था मगनलालके हाथमें है। यह नहीं कहा जा सकता कि इस आश्रम या पाठशालाका भविष्य कैसा सिद्ध होगा। अभी तो ये दोनों संस्थाएँ लोकप्रिय बनी हुई हैं।

इन सब कामोंमें अकसर वहाँके साथियोंका सहयोग पानेकी कामना होती है। किन्तु मैं जानता हूँ कि यह सम्भव नहीं। फिर भी इतना तो निश्चय समझना कि एक क्षण भी ऐसा नहीं जाता, जब तुममें से किसी-न-किसीका विचार मेरे मनमें न आता हो। तुम्हारे बहादुरीके कई कामोंका उल्लेख मैं यहाँ उचित दृष्टान्तोंके रूपमें करता रहता हूँ। मैं वहाँके अनुभवके आधारपर यहाँका अपना काम आगे बढ़ा रहा हूँ।

श्रीमती वेस्टसे कहना कि वे पल-भरके लिए भी यह न सोचें कि उन्हें या दादी माँको मैं भूल गया हूँ। मैं अपने दिये हुए वचन भी नहीं भूला हूँ। नये सम्बन्धों और नये परिचयोंके कारण मैं पुरानोंको भूलनेवाला नहीं हूँ।

यह पत्र प्रकाशनके लिए नहीं है। अपने कामके बारेमें मैं सार्वजनिक रूपसे कुछ नहीं कहना चाहता।

सस्नेह,

हृदयसे तुम्हारा,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
सौजन्य : नारायण देसाई
गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल पत्र (सी॰ डब्ल्यू॰ ४४२६) के एक अंशकी फोटो-नकलसे भी।
सौजन्य : ए॰ एच॰ वेस्ट
 
  1. देखिए "भाषण : द्वितीय गुजरात शिक्षा-सम्मेलनमें," २०-१०-१९१७ और "भाषण : प्रथमगु जरात राजनीतिक परिषद् में", ३-११-१९१७।
  2. सांकलचन्द शाह।