११५. पत्र : पार्वतीको
[मोतीहारी]
फरवरी १३, १९१८
चि॰ पार्वती[१],
तुम्हें यह पत्र मैंने गुजरातीमें लिखना शुरू किया था, क्योंकि लड़कों और लड़कियोंको मैं शायद ही कभी अंग्रेजीमें लिखता हूँ। किन्तु मैं जानता हूँ कि मुझे तुम्हें अंग्रेजीमें पत्र लिखना चाहिए। तुम कहोगी कि मैंने तुम्हें गुजराती और हिन्दी पढ़ानेकी व्यवस्था की होती, तो तुम मेरे गुजराती और हिन्दी पत्र समझ लेती। तुम्हें यह कहनेका हक है। मैं भी इतना कहूँगा कि यदि तुम मेरे साथ हिन्दुस्तान आई होती और मेरे साथ रही होती, तो तुम मेरी सच्ची लड़की बनतीं और हिन्दी तथा गुजराती सीखतीं।
सैमसे कहना कि मैं यह आशा रखता हूँ कि वह फीनिक्सकी खेतीको सफल बनाये। वहाँके अपने कामके बारेमें लिखना। राधा[२] और रुखी[३] तो बहुत बड़ी हो गई है। रुखी राधाके बराबर दीखती है। दोनोंने हिन्दीकी पढ़ाई में अच्छी प्रगति की है।
- तुम सबको प्यार।
तुम्हारा,
गांधी[४]
- [अंग्रेजीसे]
- महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।
- सौजन्य : नारायण देसाई
११६. उत्तरी क्षेत्रके कमिश्नरको लिखे पत्रका अंश
[साबरमती
फरवरी १५, १९१८]
[महोदय,]
मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूँ कि सेंत-मेत एक आन्दोलन खड़ा कर देने या किसी निरर्थक आन्दोलनको प्रोत्साहन देनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं है। मैं सत्यकी खोजमें, असलियत क्या है इसे जाननेके लिए, खेड़ा जिले में जा रहा हूँ। जान पड़ता है, जबतक आपके स्थानीय अफसरोंकी रिपोर्ट गलत साबित नहीं हो जाती, तबतक आप