पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 14.pdf/२१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८३
पत्र : बड़ौदाके एक सज्जनको

हमारे प्रार्थनापत्रोंपर जरा भी ध्यान न देंगे। इसलिए, यद्यपि जिलेके प्रतिष्ठित नेताओंने मुझे पूरा विश्वास दिलाया है, फिर भी स्वयं तथ्योंकी छान-बीन कर लेना मैं अपना फर्ज समझता हूँ। मेरी जाँचका परिणाम मालूम होने तक यदि आप लगानकी वसूली स्थगित कर सकें, तो लोगोंमें फैले हुए असन्तोषको कम करने में बड़ी सहायता मिलेगी। यदि आप कलक्टरको यह निर्देश भेजनेकी कृपा करें कि एक लोकसेवकके नाते मुझे वे यथासम्भव पूरी सहायता करें तो मुझे प्रसन्नता होगी। मेरी जाँचके दरम्यान अगर आप अपने किसी प्रतिनिधिको मेरे साथ भेजना चाहें तो मुझे कोई एतराज न होगा।[१]

[अंग्रेजीसे]
सरदार वल्लभभाई पटेल, खण्ड १

११७. पत्र : बड़ौदाके एक सज्जनको[२]

[साबरमती]
फरवरी १५, १९१८

भाईश्री...,

आपका पत्र मेरे लिए अत्यन्त दुःखद सिद्ध हुआ है। जो कुछ आपने लिखा है, वह सब जब आपने प्रतिज्ञाकी तब आपके ध्यानसे बाहर नहीं था। आपका सारा परिवार भूखों मरता तो भी आपका कर्त्तव्य अपनी प्रतिज्ञाका पालन करना था। ऐसे ही मनुष्योंसे जातिका निर्माण होता है। दूसरोंकी तो मनुष्योंमें गिनती ही नहीं की जा सकती। किसीने आपपर जोर नहीं डाला था कि आप प्रतिज्ञा करें ही। विचारके लिए आपके पास पर्याप्त समय था। हमारी उन्नति तीव्र गतिसे नहीं होती, इसका कारण केवल हमारी जबरदस्त कमजोरी ही है। इस पत्रका उद्देश्य यह नहीं है कि आप अब प्रतिज्ञाका पालन करें। यदि आप आयेंगे, तो भी अब आपको स्वीकार नहीं किया जायेगा। अब आप कुटुम्ब-पालनके काममें लगें। जो पाप हो गया, उसका विचार करें और नम्र बनकर शान्त जीवन बितायें। आप फिर कभी पूर्व निश्चयके बिना प्रतिज्ञा न करें, यही आपका प्रायश्चित्त है।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ४

 
  1. कमिश्नरने उसी दिन लिख भेजा: "आपकी जाँच समाप्त होने तक लगानकी वसूली स्थगित रखनेका मुझे तो कोई कारण दिखाई नहीं देता। मुझे विश्वास है कि यदि आप कहेंगे तो कलक्टर, श्री घोषाल निश्चय ही आपको सारी आवश्यक जानकारी और सहायता देंगे।"
  2. उक्त सज्जनने आश्रमवासी होनेकी प्रतिज्ञा ली थी, बादमें लाचारी बताते हुए पत्र लिखा।