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मार्शल लॉ के अन्तर्गत जो मामले निर्णीत हुए थे, गांधीजीने कहा कि उनपर पुनर्विचार होना चाहिए और यदि निरपराध लोगोंको सख्त सजाएँ दी गई हैं तो वे रद की जानी चाहिए। उनका यकीन था कि डॉ० किचलू और सत्यपालपर ऐसी तमाम बातें कहने और करनेका अभियोग लगाया गया है जो उन्होंने न कभी कही थीं और न कभी की थीं; और उन्हें ऐसे अभियोगोंके आधारपर ही देश-निकाला दे दिया गया है। (पृष्ठ ९० ) उन्होंने लिखा कि जब पंजाबके लोग इतनी बड़ी संख्यामें कैदमें पड़े सजाएँ भुगत रहे हों और सो भी इसलिए कि वे अपने वश-भर देशकी सेवा करना चाहते थे, उस समय मेरा जेलसे बाहर रहना मजाक नहीं है। (पृष्ठ ७७) इसलिए इस परिस्थितिमें पंजाबमें जो-कुछ हुआ है, उनकी पक्षपातहीन जाँच तो की ही जानी चाहिए। अतः जब ७ सितम्बरको हंटर जाँच समितिकी नियुक्ति की गई, गांधीजीने यह आशा व्यक्त की कि समिति न्याय करेगी। उन्होंने अनुभवी लोगोंसे सामने आकर और निर्भय होकर समितिके सामने तथ्य प्रस्तुत करने की अपील की। उन्होंने २ अक्तूबरको आर्यसमाजके नेता स्वामी श्रद्धानन्दसे प्रार्थना की कि वे गवाहियाँ देने और इकट्ठी करनेके लिए एक केन्द्रीय संस्थाका निर्माण करें।

२९ अक्तूबरको सी० एफ० एन्ड्रयूजके साथ गांधीजी 'डिसऑर्डर्स इन्क्वायरी' कमेटी के अध्यक्ष लॉर्ड हंटरसे मिले। ३ नवम्बरको दिल्लीमें इस समितिकी पहली बैठक हुई। पंजाबके लेफ्टिनेन्ट गवर्नरको गांधीजीने लिखा कि हंटर समितिके सामने सार्वजनिक संस्थाओंको गवाहियाँ पेश करनेका अधिकार दिया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि गवाहियां देनेके लिए पंजाबके नेताओंको रिहा करना भी जरूरी है। नेताओंको समितिके सामने गवाहियाँ पेश न करने देना गांधीजीकी समझमें उन्हें एक ऐसे अधिकारसे वंचित करना था जो क्रूर कर्म करनेवाले अपराधियोंको भी प्राप्त है। उन्होंने पंजाबकी सरकारको सूचित किया कि पंजाबमें हुए उपद्रवोंकी जाँच करनेके लिए कांग्रेस द्वारा गठित उप-समितिने हंटर समितिका बहिष्कार करना तय कर लिया है। कांग्रेसकी इस उप-समितिने मोतीलाल नेहरू, चित्तरंजन दास, अब्बास तैयबजी, फजल हुसैन और गांधीजीकी एक समिति बनाई और उसे अधिकार दिया कि वे स्वतन्त्र रूपसे उपद्रवोंकी जांच करें और कांग्रेसके सामने उसका विवरण प्रस्तुत कर दें। गांधीजीने इस सिलसिले में सारे पंजाबका दौरा किया, सार्वजनिक सभाएं कीं, लोगोंसे मिले और उनके बयान लिये। इस तरह जो अनुभव हुआ, उसे उन्होंने 'बहुमूल्य' कहा है और 'नवजीवन' में 'पंजाबकी चिट्ठी' के रूपमें उसे अपने पाठकोंके सामने रखा।

रौलट अधिनियमके बने रहने के कारण तो असन्तोष फैला ही हुआ था, एक और भी कारण इसीके साथ आ जुड़ा। अरब और इस्लामके पवित्र स्थानोंपर खलीफाके नियंत्रण अर्थात् खिलाफतकी मांग ही वह दूसरी चीज थी जो इस अवधिमें भारतीय राजनीतिमें बहुत महत्त्वपूर्ण रही। सितम्बर १८ को गांधीजीने बम्बईमें खिलाफतसे सम्बन्धित सभामें भाषण दिया। वहाँ प्रस्ताव पास करके टर्कीके अंग-भंग करनेपर चिन्ता प्रकट की गई और मांग की गई कि अंग्रेजोंने जो बचन दिया था वह उन्हें पूरा करना चाहिए। अक्तूबर १७ 'खिलाफत दिवस' की तरह मनाया गया। 'नवजीवन' और