पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 16.pdf/१७

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नौ

समय निकाल लेते थे। ट्रान्सवालमें एक ऐसा अध्यादेश जारी किया गया जिसका अर्थ दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयों द्वारा व्यापार करने तथा भूमि रखनेके प्राथमिक उद्देश्योंको लगभग समाप्त कर देना होता था। बादमें एक जांच-समितिकी घोषणा की गई जिसमें भारतीयों को प्रतिनिधित्व दिये जानेकी बात भी थी और उससे लोगोंको कुछ राहत महसूस हुई। किन्तु चूंकि समितिका क्षेत्र व्यापारी परवानोंतक ही सीमित था, इसलिए यह घोषणा बहुत अधिक राहत नहीं दे सकी। इसी समय देशमें चलनेवाले दमनचक्रकी गांधीजीने निन्दा की और शंकरन् नायरने वाइसरायकी कार्यकारिणी परिषद्में जो विरोधी मत व्यक्त किया, उसके आधारपर गांधीजीने खेड़ा और चम्पारनके आन्दोलनोंका फिरसे पक्ष लेते हुए निर्भय होकर प्रशासकीय निरंकुशताका पर्दा फाश किया और न्यायालयोंकी गैरजिम्मेदारीपर भी प्रकाश डाला जिसके कारण बम्बई उच्च न्यायालयसे संघर्ष आवश्यक हो गया। इन सारी बातोंके बीच भी वे पंजाबके प्रति अपने कठिन कर्त्तव्यको नहीं भूले और उस दिशामें आन्दोलन करते रहे।

अपने सम्पादकत्वमें 'यंग इंडिया' और 'नवजीवन' का प्रकाशन भी गांधीजीने इसी अवधिमें प्रारम्भ किया। उन्हें ऐसा प्रतीत होता था कि उनके पास भारतको देने योग्य कोई ऐसी वस्तु है जो अन्य किसी व्यक्ति द्वारा इस परिमाणमें तो नहीं दी जा सकती। उन्होंने अपने ही अखबारोंके जरिए उसे देने का निश्चय किया। (पृष्ठ ९७) इन पत्रोंका उपयोग उन्होंने जनताको राजनीतिक प्रश्नोंके सम्बन्धमें शिक्षित करनेके लिए तो किया ही, साथ ही उन्होंने उन्हें समाजकी सेवा और राष्ट्रीय जीवनके सभी क्षेत्रोंमें नये प्राणोंका संचार करने के साधनके रूपमें भी प्रयुक्त किया। इस दृष्टिसे उनके गुजराती पत्रका 'नवजीवन' नाम बहुत सार्थक था: इस नवजीवनका निर्माण उन्होंने जनताकी दीर्घकालीन परम्परासे प्राप्त नैतिक शक्तिको जगाकर, उसे गतिशील बनाकर किया। अपनी सरल और सुबोध गजरातीमें लोगोंसे अपनी बात उनके ही एक स्वजनकी तरह कहते हुए उन्होंने कभी उन्हें दलीलोंके जरिये समझायाबुझाया, कभी लाड़-प्यारसे मनाया तो कभी डाँटा-फटकारा भी। अन्य लाभोंके सिवा इसका एक और लाभ यह हुआ कि उन्होंने अनायास ही भाषाको उसकी परम्परागत लेखन-शैलीके बन्धनोंसे मुक्त करके गुजराती साहित्यमें एक नये युगका श्री-गणेश किया।