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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/२२०

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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भावसे स्वीकार कर लिया। मेरे लिए यह सच्ची खुशीका विषय है कि पीर साहब, जिनका अपने अनुयायियोंपर बहुत असर है, हमारे द्वारा प्रारम्भ संघर्षकी भावनाको समझ गये हैं। अपने सामनेके इस बड़े काममें सफल होनेकी आशाका आधार सरकारकी सत्ताका विरोध करना नहीं बल्कि उसका आधार असहयोगकी भावनाको हमारे द्वारा समझ लेनेमें निहित है। बर्माके लेफ्टिनेंट गवर्नरने स्वयं हमें बताया है कि अंग्रेज भारतपर शस्त्रबलसे आधिपत्य नहीं जमाये हुए हैं; उनका आधिपत्य लोगोंके सहयोगके बलपर टिका है। इस तरह सरकार जनताके साथ जो भी गलत काम करे उसके प्रतिकारका उपाय उन्होंने हमें बता दिया है। चाहे वह गलत काम जान-बूझकर किया जाये चाहे अनजाने। जबतक हम सरकारसे सहयोग करते हैं, उस सरकारकी मदद करते हैं, तबतक उस हदतक हम गलत काममें साझेदार बनते हैं। मैं मानता हूँ कि सामान्य परिस्थितियोंमें समझदार प्रजा सरकारकी गलतियोंको बरदाश्त कर लेती है; परन्तु यदि सरकार जनताकी घोषित इच्छाके बावजूद उसपर अन्याय करे तो वह उसे बरदाश्त नहीं किया करती। और मैं इस जबरदस्त सभाको यह बता देना चाहता हूँ कि भारत सरकार और साम्राज्यीय सरकार दोनोंने मिलकर भारतके प्रति अन्याय किया है, और यदि हम अपनी प्रतिष्ठा और अधिकारोंके प्रति जागरूक एक स्वाभिमानी राष्ट्र हैं तो सरकार द्वारा हमपर किये गये इस दोहरे अपमानको सह लेना उचित और सही नहीं है। टर्कीके असहाय सुलतानपर थोपी गई सन्धि-शर्तोंको रूप देने और लागू करनेमें प्रमुख साझेदार बनकर साम्राज्यीय सरकारने साम्राज्यकी मुसलमान प्रजाकी मनःपूत भावनाओंको जान-बूझकर चोट पहुँचाई है। भारतके मुसल- मानोंको शान्त करना जरूरी था उस समय वर्तमान प्रधान मन्त्रीने अपने सहयोगियोंसे सलाह करनेके बाद एक स्पष्ट वायदा किया था। मैं दावा करता हूँ कि खिलाफतके सवालका मैंने विशेष अध्ययन किया है। मेरा यह भी दावा है कि मैं खिलाफतके सवालपर मुसलमानोंकी भावनाको समझता हूँ। मैं कई बार कह चुका हूँ और फिर यहाँ घोषित करता हूँ कि खिलाफतके सवालपर सरकारने मुसलमानोंकी भावनाको ऐसी चोट पहुँचाई है जैसी पहले कभी नहीं पहुँचाई थी। और इस बातका प्रतिवाद ही नहीं किया जा सकता कि यदि भारतके मुसलमानोंने अत्यधिक आत्मसंयमसे काम न लिया होता, यदि उन्हें असहयोगका मन्त्र न दिया जाता और यदि वे उसे स्वीकार न कर लेते, तो अबतक भारतमें खून-खराबी फैल जाती। मैं यह बात अवश्य स्वीकार करता हूँ कि रक्तपातसे उद्देश्य पूरा नहीं होता। परन्तु जो आदमी क्रोधके आवेशमें हो, जिसका हृदय उद्विग्न हो वह कामके परिणामको नहीं देखता। यह हुआ खिलाफतके प्रति की गई गलतीके सम्बन्धमें।

अब मैं आपसे भारतके उत्तरी छोर, पंजाब, के बारेमें कुछ कहना चाहता हूँ। सोचिए इन दोनों सरकारोंने पंजाबके प्रति क्या किया? मैं यह बात निःसंकोच भावसे स्वीकार किये लेता हूँ कि अमृतसरमें एक क्षणके लिए भीड़ने अपना आपा खो दिया। प्रशासनकी क्रूरताने उन्हें पागल बना दिया था। परन्तु जनताके पागल हो जानेकी बिनापर बेकसूरोंका खून बहाना सही साबित नहीं किया जा सकता। उनसे