११७. भाषण : गुजरात राजनीतिक परिषद्, अहमदाबादमें
२७ अगस्त, १९२०
आपने मुझे जो काम सौंपा है उसे करना मैं अपने लिए सम्मानकी बात मानता हूँ। लेकिन मैं इस मामलेमें पूरा तटस्थ नहीं हूँ। अध्यक्ष चुनना आसान भी है और कठिन भी। हमारा देश एक नाजुक दौरसे गुजर रहा है। ऐसे अवसरपर जब कि सारे देशकी आँखें हमपर लगी हुई हैं हमें अध्यक्ष-पदके लिए ऐसा व्यक्ति चुनना चाहिए जो बूढ़े और अनुभवी कप्तानकी तरह देशकी नैयाको अच्छी तरह पार लगा दे। स्वागत समितिको बैठकमें कई नाम सुझाये गये थे। मैंने अपना मत श्री अब्बास तैयबजीके लिए दिया। मुझे लगा कि उनकी अध्यक्षतामें हमारी अधिकांश कठिनाइयाँ आसानीसे हल हो जायेंगी और चूँकि मैं स्वयं श्री तैयवजीको नजदीकसे जानता हूँ इसलिए मैं भी उन्हें हल करनेमें उनकी मदद कर सकूँगा। उनकी उम्र काफी हो चुकी है और वे कमजोर भी हैं लेकिन पंजाबके सवालके बारेमें उन्हें ज्यों ही मेरा तार मिला त्यों ही वे दौड़े हुए मेरे पास लाहौर जा पहुँचे। वे वहाँ बीमार पड़ गये; अत्याचारोंसे पीड़ित लोगोंकी सूची बनाते हुए [सदमेके कारण] उनके दिलकी धड़कन बढ़ गई। वे मुझे अपना छोटा भाई मानते हैं इसलिए तबीयत बहुत खराब हो जानेपर उन्होंने मुझे बुला भेजा और अपना वसीयतनामा लिखा डाला। दूसरे पक्षकी बात हमें ध्यानसे सुननी चाहिए। अध्यक्ष-पद स्वीकार करनेके लिए हमारा निमन्त्रण स्वीकार करता श्री अब्बास तैयबजीके लिए आसान चीज नहीं थी। चूँकि वे कमजोर हैं इसलिए बहस-मुबाहतेमें पूरा हिस्सा लेना उनके लिए मुमकिन नहीं होगा। इसलिए हमें उनका काम भरतक हलका करनेकी कोशिश करनी चाहिए।
गुजराती, ५-९-१९२०
११८. भाषण : गुजरात राजनीतिक परिषद्में असहयोगपर
२८ अगस्त, १९२०
कांग्रेसके इतिहासमें ऐसा प्रस्ताव[१]पेश करनेकी यह पहली घटना है। इसलिए इस प्रस्तावपर सब लोगोंको बहुत गम्भीरतापूर्वक विचार करना चाहिए और जो नेता उस प्रस्तावके विरोधमें बोलनेवाले हैं उनकी बातको विनयपूर्वक सुनना चाहिए। यदि हमें असहयोगके इस शस्त्रका उपयोग अच्छी तरह करना हो तो हमें अपने विरोधियोंको बलपूर्वक नहीं बल्कि प्रेमसे जीतनेकी कोशिश करनी चाहिए। यह शस्त्र
- ↑ परिषद् के दूसरे दिन गांधीजीने असहयोगपर प्रस्ताव पेश किया था।