"हिन्दू" के प्रतिभाशाली सम्पादक श्री कस्तूरी रंगा आयंगर मद्रासके राष्ट्रवादी दलका नेतृत्व कर रहे थे। अन्य अनेक नेताओंके साथ इन सबने असहयोगके प्रस्तावका बड़ा जबरदस्त विरोध किया। वहाँ जो विशाल श्रोतृसमूह उपस्थित था उसे मैंने आगाह कर दिया कि जबतक आप कष्ट सहनके लिए तैयार नहीं होते और आपको इस बाकी पूरी प्रतीति न हो जाये कि सच्चा असहयोग मेरे द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमके अनुसार चलनेपर ही सम्भव है, तबतक आप मेरा प्रस्ताव स्वीकार न करें। लेकिन श्रोतृसमूह तो कर्मके लिए उद्यत था, वह कष्ट सहन करना चाहता था। मतदानकी क्रिया सांगोपांग सम्पन्न कराई गई। कांग्रेस पंडालको मतदानके लिए बिलकुल खाली करा दिया गया। लाला लाजपतरायने स्वयं अपने निरीक्षणमें मतदान करवाया। मतदानकी कार्यवाही में छः घंटे लगे। मध्य प्रान्त और बरारके अलावा अन्य सभी प्रान्तोंने प्रस्तावके पक्षमें मत दिये। मध्य प्रान्तने मेरे प्रस्तावके पक्षमें ३० मत दिये, जब कि बाबू विपिनचन्द्र पालके प्रस्तावके पक्षमें ३३। मैं आँकड़े नीचे दे रहा हूँ :
संशोधनके पक्ष में | प्रस्ताव के पक्ष में | |
बम्बई | २४३ | ९३ |
मद्रास | १६१ | १३५ |
बंगाल | ५५१ | ३९५ |
संयुक्त प्रान्त | २५९ | २८ |
पंजाब | २५४ | ९२ |
आन्ध्र | ५९ | १२ |
सिन्ध | ३६ | १६ |
दिल्ली | ५९ | ९ |
बिहार | १८४ | २८ |
बर्मा | १४ | ४ |
मध्य प्रान्त | ३० | ३३ |
बरार | ५ | २८ |
१,८५५ | ८७३ |
मेरे प्रस्ताव में सम्पूर्ण खिलाफत कार्यक्रमके आधारभूत सिद्धान्तको, यहाँ तक कि कर-बन्दीको भी, स्वीकार किया गया और उसमें खिताबों और अवैतनिक पदों, न्यायालयों, स्कूलों और कालेजों तथा नई कौंसिलों के बहिष्कारके कार्यक्रमको तत्काल स्वीकार कर लेने की सलाह दी गई थी। बाबू विपिनचन्द्र पालने यह सुझाव रखा कि हमारी माँगें प्रस्तुत करनेके लिए एक प्रतिनिधिमण्डल इंग्लैंड भेजा जाये और इस बीच राष्ट्रीय स्कूलोंकी स्थापना की जाये, पंचायती अदालतें गठित की जायें और नई कौंसिलोंका बहिष्कार न किया जाये। उनके प्रस्तावका मतलब परिणामरूपमें यह होता कि कौंसिलोंके लिए चुनाव लड़ा जाये और फिर शायद कौंसिलोंमें प्रवेश करके रोध-अव-