१४९. पत्र : एन॰ सी॰ सिन्हाको[१]
बोलपुर
[१७ सितम्बर, १९२० के पूर्व][२]
आपने वकीलोंके बारेमें लिखा, इस बातसे बड़ी प्रसन्नता हुई। हम कोई खतरा उठाये बिना और सामान्य जीवनमें थोड़ा-बहुत व्यतिक्रम उत्पन्न किये बिना स्वराज्य नहीं प्राप्त कर पायेंगे। मैं आपकी इस बातसे सहमत हूँ कि हम वकील लोग मजिस्ट्रेटोंकी आँखकी किरकिरी रहे हैं; लेकिन ऐसा तब था जब हम उनकी रायमें उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करते थे। लेकिन आप देखेंगे कि जब हम खुद ही अदालतोंका त्याग कर देंगे तो नौकरशाही इस चीजको पसन्द नहीं करेगी। वकीलोंने अभी हालमें संथाल परगना और अन्य जिलोंको जो सहायता देनी शुरू की है, उससे अगर वे फिलहाल वंचित भी हो जाते हैं तो उससे क्या बने-बिगड़ेगा? और वैसे भी, मुझे उनकी सहायता करनेके सैकड़ों तरीके दिखाई देते हैं, इसलिए पूर्वग्रह से ग्रस्त या मूढ़ मजिस्ट्रेटोंके सामने उनके मामलेकी वकालत किये बिना भी काम चल सकता है। आज वकील ही जनमतका दिशा-निर्देश और राजनीतिक गति-विधियोंका संचालन करते हैं। और यह काम वे टेनिस और बिलियर्ड खेलनेके बाद जो थोड़ा समय उन्हें मिलता है, उसीके दौरान करते हैं। मैं तो ऐसी अपेक्षा नहीं रखता कि वकील लोग इस तरह अपने अवकाशका समय बिलियर्ड और राजनीतिमें लगाकर हमें स्वराज्य दिलानेमें कोई खास मदद कर सकेंगे। मैं चाहता हूँ कि उनमें जो लोक-सेवी लोग हों, कमसे-कम वे अपना पूरा समय लोक-कार्यमें ही लगायें, और जब ऐसा दिन आयेगा कि वे वैसा करने लगेंगे तो मैं विश्वास दिलाता हूँ कि देशका भविष्य कुछ और ही होगा।
हृदयसे आपका,
मो॰ क॰ गांधी
हिन्दू, २९-९-१९२०