कांग्रेसने श्री गांधीके क्रमिक अहिंसात्मक असहयोगके पूरे कार्यक्रमको स्वीकार कर लिया है, किन्तु तत्काल प्रयोगके लिए उपर्युक्त बातोंको हाथमें लिया है।
सवाल यह है कि इन मुद्दोंको कैसे अमलमें लाया जाये।
खितावोंका बहिष्कार
कार्यक्रमका यह सबसे कठिन भाग है, परन्तु साथ ही यह सबसे जरूरी भी है। यह कठिन इसलिए है कि यह उन लोगोंपर लागू होता है जिन्होंने अबतक सक्रिय सार्वजनिक जीवनमें सामूहिक रूपसे कोई हिस्सा नहीं लिया है और अपने खिताबों अथवा सम्मानको वे प्राणोंकी तरह मूल्यवान मानते रहे हैं। और असहयोग कार्यक्रममें यह बात जरूरी इसलिए है कि इस वर्गका भी भ्रम दूर करना है, और इसे सिखाना है कि अन्यायी सरकारसे तोहफे लेना एक ऐसी अपमानजनक बात है जिससे निष्ठापूर्वक बचना चाहिए।
अतएव प्रत्येक शहर, ताल्लुके और जिलेमें कार्यकर्त्ताओंको ऐसे खिताबयाफ्ता और अवैतनिक पदाधिकारी लोगोंकी एक सूची तैयार कर लेनी चाहिए और प्रमुख असहयोगियोंके एक छोटेसे शिष्टमण्डलको उनसे मिलकर पूरी विनयशीलता और नम्रतासे उन्हें समझाना चाहिए कि देशकी भलाईके लिए खिताब और अवैतनिक पद छोड़ देना उनके लिए कितना जरूरी है। किसी भी तरहका अनुचित दबाव न डाला जाये। वाणीको हिंसासे बहुत सावधानीसे बचना चाहिए और जिन लोगोंने अपने खिताब और अवैतनिक पद छोड़नेसे इनकार कर दिया हो उनकी सूची प्रान्तीय सदर मुकाममें प्रकाशनार्थ भेज देनी चाहिए। जो लोग स्वयं अपने खिताब और अवैतनिक पद छोड़ चुके हों, उनसे और लोगोंको भी वैसा करनेके लिए प्रोत्साहित करनेकी अपेक्षा की जायेगी। जिन्हें ऐसे खिताब या पद प्राप्त हैं, अगर उन लोगोंने असहयोगके पक्षमें मत दिया हो, तो उनसे अपने खिताब और पद तुरन्त छोड़ देनेकी अपेक्षा करना स्वाभाविक ही है। ऐसा करते हुए उन्हें उसका कारण भी बता देना चाहिए, अर्थात् यह कि वे कांग्रेसके प्रस्तावके कारण अपने खिताब और पद छोड़ रहे हैं।
सरकारी या सरकार-नियन्त्रित स्कूलों और कालेजोंका बहिष्कार
यह कदम सचमुच ही सबसे अधिक आसान होना चाहिए, क्योंकि शिक्षा प्राप्त कर रहे बच्चोंके माता-पिताओं तथा वयस्क छात्र-छात्राओंने देशकी राजनीतिमें बहुत रुचि ली है। फिर भी इस कदमको बहुतेरे लोगोंने असम्भव माना है, क्योंकि इन स्कूलों और कालेजोंके पक्षमें उनके मनमें पूर्वग्रह जमा हुआ है। तथापि जो लोग एक निश्चित समयके भीतर स्वराज्य पानको उत्सुक हैं, उन्हें यह स्पष्ट दिखाई देगा कि कालेजोंकी सनदोंसे जिन सरकारी नौकरियोंकी आशा बँधती है, जबतक हम उन नौकरियोंका मोह छोड़नेमें समर्थ नहीं होते तबतक हम अगली कई पीढ़ियोंतक अपने लक्ष्यतक नहीं पहुँच सकते। सरकारकी चाकरीसे छुटकारा पाने और सच्ची राष्ट्रीय संस्कृतिको विकसित करनेका एकमात्र उपाय यही है कि हम अपने बच्चोंको छूँछी शिक्षा देनेवाले, झूठा इतिहास पढ़ानेवाले और हमारी राष्ट्रीय जरूरतोंपर कोई ध्यान