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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
होनेके बजाय नेकनामी ही होती है। थोरो[१]-जैसे लोगोंने अपने व्यक्तिगत उदाहरणोंके बलपर ही दास-प्रथाको समाप्त किया। थोरोने कहा था:
- अगर इस मैसाच्युसेट्स राज्यके एक हजार व्यक्ति, या सिर्फ सौ व्यक्ति ही, और सौकी भी बात जाने दीजिए सिर्फ दस और दस ईमानदार व्यक्ति, बल्कि मैं तो कहूँगा कि सिर्फ एक ईमानदार व्यक्ति भी दास रखना बन्द करके सचमुच इस साझेदारीसे अलग हो जाये और अपने इस आचरणके लिए किसी मुफस्सिल जेलमें ठूँस दिये जानेको सजा खुशी-खुशी स्वीकार कर ले तो इसका मतलब होगा——अमरीकामें दास-प्रथाकी समाप्ति। कारण, प्रारम्भ कितने छोटे पैमानेपर किया जाता है, इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता। अगर एक बार कोई शुभ कार्य ठीकसे प्रारम्भ कर दिया जाये तो वह स्थायी बन जाता है।
एक और स्थानपर उन्होंने कहा है:
- किसी अन्यायी सरकारका विरोध करनेवाले व्यक्तिको जेल भेज देने और उससे उसकी सम्पत्ति छीन लेने, दोंनोंसे एक ही उद्देश्यकी सिद्धि होगी; लेकिन मुझे अधिक सम्भावना तो पहली बातकी ही दिखाई दी है, क्योंकि जो लोग अपने उच्चत्तम अधिकारपर आग्रह रखते हैं और इस तरह किसी भ्रष्ट सरकारके लिए सबसे अधिक खतरनाक हैं, वे आम तौरपर ऐसे लोग हुआ करते हैं जिन्होंने सम्पत्ति अर्जित करनेमें अपना ज्यादा समय नहीं लगाया है।
अतएव श्री पटेल और डा॰ कानुगाको, उन्होंने जिस सुन्दर उद्देश्यके लिए इतने सुन्दर ढंगसे यह सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है, हम बधाई देते हैं।
[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ७-७-१९२०
यंग इंडिया, ७-७-१९२०
११. मुसलमानोंके घोषणापत्रकी आलोचना
वाइसराय महोदयको भेजे गये खिलाफत-सम्बन्धी प्रार्थनापत्र[२]और उसी विषयपर लिखे गये मेरे पत्रकी[३]आंग्ल-भारतीय अखबारोंने बड़ी तीव्र आलोचना की है। यों 'टाइम्स ऑफ इंडिया' का दृष्टिकोण सामान्यत: निष्पक्ष हआ करता है; लेकिन उसने भी इस घोषणापत्रमें कही गई कुछ बातोंपर बड़ी आपत्ति की[४]है, और मैंने जो अपने पत्र में कहा था कि यदि शान्ति-संधिकी शर्तोंमें परिवर्तन नहीं किये जाते तो