बातका सूचक है कि हम लोग जनताको कुछ नहीं समझते। इसी तरह जागते और हैरान होते हुए हम लोग भिवानी पहुँचे। आसपासके गाँवोंसे कोई ५० हजार आदमी इकट्ठे थे और मुझे लगता था कि हम लोग उसमें पिस हो जायेंगे। किन्तु जब मैंने वहाँ परिपूर्ण व्यवस्था देखी, तो मुझे ताज्जुब हुआ और बहुत अच्छा लगा। स्टेशनपर न भाग-दौड़ थी और न शोर-गुल। सब अपनी-अपनी जगह खड़े रहे। जबरदस्त भोड़के बावजूद जलूसकी आसानीसे व्यवस्था होती रही। सभा मण्डपकी व्यवस्था तो और भी ध्यान देने योग्य थी। बहुत बड़ा कलापूर्ण किन्तु आडम्बरहीन एक मण्डप, जिसमें एक भी कुर्सी नहीं, अध्यक्षके लिए भी नहीं; पण्डालके बीच एक लम्बा ऊँचा मंच जिसपर सम्भ्रान्त अतिथियोंके बैठने की व्यवस्था। पण्डालमें कोई १२ हजार लोग बैठे थे और फिर भी पण्डाल ठसा-ठस नहीं था। फाटक चौड़े-चौड़े थे और मैदानका उतार मध्यकी ओर रखा गया था, ताकि सब आसानीसे मध्य में रखा हुआ मंच देख सकें। मैं इतना ही सुझाना चाहता हूँ कि अर्द्धवृत्ताकार मण्डप ज्यादा अच्छा होता है। मंचके पीछे बैठनेका इन्तजाम नहीं होना चाहिए। सिन्धके इन्तजामकी हम इन स्तम्भोंमें चर्चा कर चुके हैं। अंग्रेजी अक्षर उलटी [टी] 'T' की तरह बैठनेका प्रबन्ध था, इसलिए सुननेकी हदतक यह प्रबन्ध बेहतर था।
आनेवाले कांग्रेसके अधिवेशनमें भिवानी और हैदराबाद (सिन्ध) का उदाहरण सामने रखना चाहिए। स्वागत समितिको इस तरह कुछ सहस्र मुद्राओं और जगहकी बचत हो जायेगी। अलबत्ता उन्हें मंचपर या उसके नीचे, कुर्सियोंका बहिष्कार करना पड़ेगा। हमें अधिकसे-अधिक जनता और जननेताओंको आकर्षित करनेकी कोशिश करनी चाहिए। हम थोड़े से पढ़े-लिखे लोग जनताको उसके अपने नेताओंके द्वारा ही नियन्त्रित रखने की आशा कर सकते हैं, क्योंकि जनताकी तरह ही उसके नेता भी भोले-भाले और सरल हैं। कुछ लोग ही कुर्सियाँ चाहते हैं, इसलिए अगर उन ज्यादातर आदमियोंपर कुर्सियाँ थोपें, जिन्हें उनकी जरूरत महसूस नहीं होती, तो यह एक प्रकारकी क्रूरता है। मैं यह भी आशा करता हूँ कि नागपुरके स्वयंसेवकोंको अभीसे प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया जायेगा। उन्हें उनके विभिन्न सेवा-कार्य अभीसे सिखाये जाने चाहिए, ताकि छोटीसे-छोटी बातका भी अच्छेसे-अच्छा इन्तजाम हो सके।
यंग इंडिया, २७-१०-१९२०