तुम यदि असहयोगको पसन्द करते हो, इस राक्षसी राज्यके जुएसे निकलना चाहते हो, तो जब स्वयंसेवक आयें तब उठकर चले न जाना, बल्कि यथाशक्ति उन्हें कुछ-न-कुछ देकर जाना। मेरा या वल्लभभाईका नाम लेकर या स्वराज्य सभाका काम लेकर कोई तुमसे कुछ माँगे, तो बिलकुल मत देना। तुम उन्हें पहचानते हो, तो उनके हाथमें रुपया देना। इस समय जिसके पास रुपया-पैसा न हो, वह अहमदाबाद भेज सकता है। आजसे ईश्वर तुम्हें साहसी बनाये, बलिदानकी शक्ति दे; ईश्वर तुम्हें सचाई और नम्रता दे और तुम केवल ईश्वरसे ही डरो और वह तुममें से मनुष्य-मात्रका डर निकाल दे।
नवजीवन, ३-११-१९२०
२१८. भाषण : स्त्रियोंकी सभा, डाकोरमें
२७ अक्तूबर, १९२०
आप सब शान्तिसे मेरी बात सुनना। मुझे जो कहना है, मैं थोड़े ही शब्दों में कह दूँगा। आपमें से कुछ बहनें डाकोरकी ही होंगी और कुछ बाहरसे यहाँ आई होंगी। मुझे विश्वास है कि इतनी सारी बहनोंमें शायद ही किसीको पता होगा कि इस समय भारतकी क्या दशा है? आज हिन्दुस्तानकी जैसी हालत है, उसमें हमारा कर्त्तव्य क्या है, हमारा धर्म क्या है? आप सब इस तीर्थस्थानमें पवित्र भावसे आई हैं। आपको लगता होगा कि डाकोरजीके दर्शन किये कि सब पाप नष्ट हो गये। गोमतीमें स्नान कर लेने-मात्रसे सर्वस्व मिल गया। कुछ बहनोंका यह भी खयाल होगा कि गांधी-जैसे महात्माके दर्शन करके कृतार्थ हो गये। यह बात बिलकुल गलत है। गोमतीजीमें स्नान करो और मनको पवित्र न बनाओ, तो उलटे आप गोमतीजीको गंदा बनाती हैं। डाकोरजीके दर्शन करने जायें और वहाँ केवल पैरोंका मैल छोड़ आयें, तो वह दर्शन कोई काम नहीं आता। मनको पवित्र करें, हृदयमें अच्छे भाव उत्पन्न करें, अपने बारेमें ज्ञान प्राप्त करें, तभी डाकोरनाथका दर्शन सफल होगा। यह तो आप खुद ही कहेंगी कि मेरे-जैसे अश्रद्धालु या किसी ईसाईको दर्शनसे क्या लाभ होगा। मैं आपको बता देना चाहता हूँ कि जबतक हमारा मन शुद्ध नहीं, दिल जबतक साफ नहीं हुआ तबतक गोमतीका स्नान या रणछोड़रायके दर्शनका कुछ भी फल नहीं हो सकता।
अब सब बहनोंसे मेरा पहला अनुरोध यह है कि आप यह समझ लें कि सच्चा धर्म किस बात में है। जबतक आप यह न समझें कि सच्चा धर्म किस बातमें है, जबतक नहीं समझेंगी कि भारतकी क्या दशा है, आप जबतक यह मानती हैं कि सरकार तो माँ-बाप है, उसके राज्यमें हम शान्तिसे रहती हैं, तबतक आप गुलामीसे नहीं छूट सकतीं। मैं मानता हूँ कि सरकारने हमें गुलाम बनाया है। तीस वर्षतक मैं मानता था