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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 18.pdf/९१

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पत्र : एक पाठककी ओरसे

कुछ वर्षोंसे बहुत खराब है। अब भी वे कमजोर ही हैं। उन्होंने हर रोज थोड़ाबहुत कातनेका निश्चय किया है।

और अब अतिया बेगम तथा जंजीरा बेगमने चरखा सीखना शुरू कर दिया है।

पंजाबमें श्रीमती सरलादेवी स्वदेशीके काममें जुटी हुई हैं। वे अपने हाल ही के पत्रमें लिखती हैं कि उन्होंने अमृतसर जाकर वहीं रतनचन्द और बुग्गा चौधरी, जो जेलमें हैं, की धर्मपत्नियों और रतनदेवीको, जो अपने पतिके शवको गोदमें रख रातभर विलाप करती रही थीं, इस कार्यमें लगा लिया है। उन्होंने वहाँ एक समिति नियुक्त करके स्त्रियोंके लिए चरखेके वर्ग खोले हैं। लुधियानामें स्त्रियोंकी सभा करके वहाँ यही काम शुरू कर दिया है। यह सारी प्रवृत्ति कबतक चल सकेगी, इसके बारेमें हम कुछ नहीं कह सकते लेकिन अनुभव हमें कमसे-कम इतना तो सिखाता है कि जहाँ एक भी सच्ची निष्ठावाला व्यक्ति हो वहाँ आरम्भ की हुई प्रवृत्ति मन्द नहीं पड़ सकती।

आजकल देश में हाथसे कते सूतके कपड़े पहनने का शौक बढ़ता जा रहा है। ऐसे समय यह आवश्यक है कि गुजरातकी बहनें आगे आयें। उनमें शक्ति तो बहुत है, लेकिन पहले इच्छा [भी तो] होनी चाहिए। वस्त्रहीनोंकी लाज ढाँकनेका प्रयत्न साधारण प्रयत्न नहीं है। जबतक स्त्रियाँ काम करनेके लिए आगे नहीं आतीं तबतक हिन्दुस्तानमें कपड़ेकी तंगी कम नहीं हो सकती।

[गुजराती से]
नवजीवन, १८-७-१९२०
 

३९. पत्र : एक पाठककी ओरसे[]

मुझे यहाँ यह पत्र प्रकाशित करते हुए बड़ी प्रसन्नता हो रही है। मैंने ऐसी अनेक दलीलें सुनी हैं और उनका उत्तर भी दिया जा सकता है। पूछा गया है कि बंगालको उसके कर्त्तव्य के प्रति सचेत करनेका क्या उपाय है? अवसर आनेपर उसे अपने कर्तव्य का भान हो जायेगा। फिर क्या प्रत्येक प्रान्तका अपना-अपना कार्यक्षेत्र नहीं होता? बंगालने धन नहीं दिया तो विद्वत्ताका दान दिया है। गुजरातने जो दान दिया है उसमें आश्चर्यकी बात नहीं है। गुजरातके पास [धन] बहुत है, उसे देना आता है और उसने दिया है। बंगालको देना नहीं आता; इससे उसने नहीं दिया। कविश्रीको[]सहायताकी आवश्यकता जान पड़ी इसका अर्थ यही है कि बंगाल उन्हें

१८—५
  1. कंचनलाल एम॰ खाँडवाला। उक्त पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। ११-७-१९२० के नवजीवनमें गांधीजी द्वारा की गई टीकाकी चर्चा करते हुए श्री खाँडवालाने लिखा था कि गुजरातको आलोचना सही नहीं है तथा बंगालके लोगोंने बंगालसे बाहरके प्रान्तोंके सार्वजनिक कार्योंमें कभी योगदान नहीं किया है। देखिए "शान्तिनिकेतन", ११-७-१९२० ।
  2. रवीन्द्रनाथ ठाकुर।