पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 2.pdf/१०

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मूर्त हो उठी थी।" और कुछ स्थानोंमें तो "किसी भी प्रतिष्ठित भारतीयका रहना असम्भव कर दिया गया था।" 'हरी पुस्तिका' एक प्रामाणिक दस्तावेज था। उसमें उपर्युक्त स्थितिमें निहित प्रजातीय (रेशियल) और साम्राज्य-सम्बन्धी प्रश्नोंको स्पष्ट किया गया था। भारतीय मामलेको पेश करने में गांधीजी ने सर्वथा सत्य ही कहने की अत्यधिक सावधानी बरती थी। नेटालके भारतीयोंके साथ किये जानेवाले व्यवहारके बारेमें अपने विवरणका उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा है: "आगे दिये जानेवाले प्रत्येक विवरणका एक-एक शब्द रंच-मात्र सन्देहके भी परे सही सिद्ध किया जा सकता है।" भारतमें, उसके राजनीतिक इतिहासके इस कालमें, शायद इतनी खपत किसी भी सार्वजनिक प्रश्नके प्रचार-साहित्यकी नहीं हुई, जितनी कि इस पुस्तिकाकी हुई थी। मद्रासकी सभा तथा अन्यत्र एकत्रित हुई जनताकी भारी मांग पूरी नहीं की जा सकी और गांधीजी ने भारतसे विदा होते-होते शीघ्रतामें उसकी एक और आवृत्ति प्रकाशित की थी।

'हरी पुस्तिका' के बाद दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंकी कष्ट-गाथापर एक स्वतन्त्र और सर्वथा तथ्यात्मक टिप्पणी' (पृ॰ ३९–५२) प्रकाशित हुई। उसके साथ विभिन्न अधिकारियोंको भेजे गये स्मरणपत्रों और प्रार्थनापत्रोंकी नकलें भी दी गई थी। इस 'टिप्पणी' में दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक राज्यके भारतीयोंकी स्थितिका स्पष्ट वर्णन उपलब्ध है। गांधीजी ने अपने पाँच मासके भारतवासमें जो शिक्षणात्मक कार्य किया, उसकी पृष्ठभूमिका परिचय भी इससे पाठकोंको मिलता है। भविष्यके विद्यार्थियोंके लिए यह ब्रिटिश उपनिवेशोंके भारतीयोंकी असह्य स्थितिका विशद रूपसे चित्रण करती है। इसमें वणित परिस्थितियोंके ही विरुद्ध गांधीजीने लगभग बीस वर्ष तक एक सतत और विषम संघर्षका नेतृत्व किया, और उस दौरान उन्होंने सत्याग्रहरूपी महान् अस्त्रको गढ़ा।

लिखित शब्दों द्वारा भारतीय लोकमतको शिक्षित करने के अपने आन्दोलनको गांधीजी सभाओंमें भाषण देकर पुष्ट करते थे। उन्होंने इसका आरम्भ बम्बईकी एक सभामें भाषण द्वारा किया। सभाके अध्यक्ष फीरोजशाह मेहता थे और उसमें नगरके प्रमुख व्यक्ति उपस्थित थे। यह पहला प्रसंग था, जबकि नौजवान गांधीजी ने, जो अभी अपनी उम्रके तीसरे दशकमें ही थे, सीधे अपने देशभाइयों और राष्ट्रके नेताओंकी सभामभाषण किया। भाषणका उपलब्ध अंश इस खण्डमें शामिल कर दिया गय है (पृ॰ ५३-६३)। उसमें उन्होंने उन समस्याओंकी रूपरेखा बताई थी जिनका दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोको सामना करना पड़ रहा था। उन्होने बताया था कि किस तरह युरोपीय उपनिवेशियों और स्थानिक सरकारके विरोधका ज्वार भारतीयों के विरुद्ध बढ़ रहा है, और किस तरह दक्षिण आफ्रिकी विधानमण्डलों द्वारा बनाये गये एशियाई-विरोधी कानूनोंके परिणामस्वरूप उनका राजनीतिक अधःपतन और आर्थिक विनाश होनेवाला है। उन्होंने चेतावनी दी थी कि भारतीय "सब ओरसे घिरे हुए है" और भारतकी जनता, भारत-सरकार तथा साम्राज्यकी सरकारसे अपील की थी कि उनके हितोंका संरक्षण किया जाये