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भाषण : मद्रासकी सभामें

जहाँतक अवधि पूरी कर लेनेवाले भारतीयोंका सम्बन्ध है, मैं नहीं समझता कि किसी व्यक्तिको, जबतक वह अपराधी न हो और उस अपराधके लिए उसे देश-निकाला न दिया गया हो, दुनियाके किसी भी भागमें जानके लिए बाध्य किया जाना चाहिए। मैंने इस प्रश्नके बारेमें बहुत-कुछ सुना है। मुझसे बार-बार अपना दृष्टिकोण बदलने को कहा गया है, परन्तु मैं वैसा नहीं कर सका। एक आदमी यहाँ लाया जाता है। सिद्धान्ततः रजामंदीसे, व्यवहारतः बहुधा बिना रजामंदीके लाया जाता है। वह अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ पाँच वर्ष यहाँ खपा देता है। नये सम्बन्ध स्थापित करता है। शायद पुराने सम्बन्धको भुला देता है। यहाँ अपना घर बसा लेता है। ऐसी हालतमें मेरे न्याय और अन्यायके विचारसे, उसे वापस नहीं भेजा जा सकता। भारतीयोंसे जो-कुछ काम आप ले सकते हैं वह लेकर उन्हें चले जानेका आदेश दें, इससे तो यह बहुत अच्छा होगा कि आप उनको यहाँ लाना ही बिलकुल बन्द कर दें। ऐसा दीखता है कि उपनिवेश या उपनिवेशका एक भाग भारतीयोंको बुलाना तो चाहता है, परन्तु उनके आगमनके परिणामोंसे बचना चाहता है। जहाँतक मैं जानता हूँ, भारतीय हानि पहुँचानेवाले लोग नहीं है। कुछ बाबतोंमें तो वे बहुत परोपकारी हैं। फिर, ऐसा कोई कारण तो मेरे सुनने में कभी नहीं आया, जिससे किसी व्यक्तिको पाँच वर्षतक चाल-चलन अच्छा रखनेपर भी देश-निकाला दे दिया जाये, और इस कार्यको उचित ठहराया जा सके।

और श्री बिन्स, जो नेटाली आयोगके एक सदस्यके रूपमें भारत-सरकारको उपर्युक्त परिवर्तनोंके लिए राजी करने भारत आये थे, उन्होंने दस वर्ष पूर्व आयोगके सामने यह गवाही दी थी :

मैं समझता हूँ, जो यह बात उठाई गई है कि भारतीयोंको गिरमिटकी अवधि पूरी हो जानेके बाद भारत वापस जानेके लिए बाध्य किया जाये, वह भारतीय आबादीके लिए अत्यन्त अन्यायपूर्ण है। भारत सरकार उसे कभी स्वीकार न करेगी। मेरे खयालसे स्वतन्त्र भारतीयोंकी आबादी समाजका एक अत्यन्त उपयोगी अंग है।

परन्तु बड़े लोग तो अपने विचार कपड़े बदलने के समान जल्दी-जल्दी और बारबार बदल सकते हैं। उन्हें उसका कोई दण्ड भी भोगना नहीं पड़ता, उलटे उससे फायदा हो सकता है। कहते हैं, उनमें ऐसे परिवर्तन सच्चे विश्वासके कारण होते है। तथापि, सहस्रशः दयाकी बात है कि बेचारे गिरमिटिया भारतीयोंके दुर्भाग्यसे उनका यह भय—नहीं, उनकी यह आशा कि भारत-सरकार कदापि उन परिवर्तनोंकी सम्मति न देगी, पूरी नहीं हुई।

लन्दनके 'स्टार' ने विधेयकको पढ़कर इन शब्दोंमें अपने उद्गार व्यक्त किये थे :