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सम्पूर्ण गांधी वाङ् मय

है। हम शाही परिवारके सदस्य हैं और उसी महिमामयी माँ के बच्चे हैं—हो सकता है, गोद लिये बच्चे हों—और हमें उन्हीं अधिकारों और विशेषाधिकारोंका आश्वासन दिया गया है, जो यूरोपीय बच्चोंको प्राप्त हैं। यही विश्वास था जिसको लेकर हम नेटाल-उपनिवेशमें गये थे और हमें भरोसा है कि हमारे विश्वासका आधार मजबूत था।

एजेंट-जनरलने हमारी पुस्तिकाके इस कथनका प्रतिवाद किया है कि रेलवे और ट्रामगाड़ियोंके कर्मचारी भारतीयोंके साथ पशुओं-जैसा व्यवहार करते हैं। अगर मेरी कही हुई बातें गलत भी हों तो इससे कानूनी निर्योग्यताएँ गलत साबित नहीं होतीं। और हमने प्रार्थनापत्र तो केवल कानूनी निर्योग्यताओंके बारेमें ही भेजे हैं। उन्हीं को हटाने के लिए हम ब्रिटेन और भारतकी सरकारोंके सीधे हस्तक्षेपकी प्रार्थना करते हैं। परन्तु मेरा दावा तो है कि एजेंट-जनरलको गलत जानकारी दी गई है। मैं फिर दुहराता हूँ कि भारतीयोंके साथ रेलवे और ट्रामगाड़ियोंके कर्मचारियोंका बरताव पशुओं-जैसा ही है। मैंने पहले-पहल जब यह वक्तव्य दिया था, उसे लगभग दो वर्ष हो गये हैं। वह ऐसे समाजमें दिया गया था, जहाँ तुरन्त उसका प्रतिवाद किया जा सकता था। मैंने नेटालकी स्थानिक संसदके सदस्योंके नाम एक 'खुली चिट्ठी'[१] लिखी थी। उपनिवेशमें उसका व्यापक रूपसे प्रचार हुआ था और दक्षिण आफ्रिकाके प्रायः प्रत्येक प्रमुख पत्रने उसका उल्लेख किया था। उस समय किसीने उसका खंडन नहीं किया। कुछ पत्रोंने तो उसे स्वीकार भी किया था। ऐसी परिस्थितियोंमें मैंने उसे यहाँ प्रकाशित अपनी पुस्तिकामें उद्धृत कर दिया। मेरा स्वभाव बातोंको अतिरंजित करने का नहीं है और अपने ही पक्षमें प्रमाण पेश करना मुझे बहुत अप्रिय मालूम होता है। परन्तु मेरे वक्तव्यको और उसके द्वारा उस कार्यको, जिसकी मैं हिमायत कर रहा हूँ, बदनाम करने का प्रयत्न किया गया है, इसलिए उस कार्य के विचारसे आपको यह बता देना मैं अपना कर्त्तव्य समझता हूँ कि जिस 'खुली चिट्ठी में मैंने वह वक्तव्य दिया था, उसके बारेमें दक्षिण आफ्रिकी पत्रोंके क्या विचार हैं। जोहानिसबर्गके प्रमुख पत्र 'स्टार' ने कहा है :

श्री गांधीने प्रभावोत्पादक ढंगसे, सौम्यताके साथ और अच्छा लिखा है। उन्होंने स्वयं उपनिवेशमें आनेके बाद कुछ अन्याय भोगा है। परन्तु उनकी भावनाएँ उससे प्रभावित हुई नहीं दीखती। और यह स्वीकार करना ही होगा कि 'खुली चिट्ठी' के स्वरपर उचित रूपसे कोई आपत्ति नहीं की जा सकती। श्री गांधीने अपने उठाये हुए प्रश्नोंकी मीमांसा स्पष्ट संयमके साथ की है। नेटाल-सरकारका मुखपत्र 'नेटाल मर्युरी' कहता है :

श्री गांधीने शान्ति और सौम्यताके साथ लिखा है। उनसे जितनी निष्पक्षताको अपेक्षा की जा सकती है उतनी निष्पक्षता उनमें है। और इस

  1. देखिए खण्ड १, पृ॰ १७५–९५।